लाख हजार दिए विधवा को
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छल बल सारे अस्त्र से
जनता रहे डराय
बोटी-बोटी काट दूं
जो हमरे आड़े आय
जाति धर्म में बाँट के
हर गुट करते राज
ईमाँ इन्सां जो चले
धोखा हर पल खाय
हम जो चले सफाई देते
सौ सौ प्रश्न लिए आते
उन गुंडों के पास वे
एक नहीं लेकर जाते
आँख तरेरे छीन कैमरा
जान की धमकी दे जाते
अपने विकास को आसमान पे
जनता घुट्टी पिलवाते
राज-नीति अब है गन्दी
‘वे’ मिल हमको लड़वाते
लाख हजार दिए विधवा को
फोटो अपनी छपवाते
कितने मरे -मिले ना अब तक
‘राज’ -राज ये कैसा भारत ?
गर्व करें हम जिस संस्कृति की
आओ झांके क्या ये भारत ?
चीख पुकार शोरगुल भय है
निशि दिन होता अत्याचार
हे ! माँ भारति न्याय कहाँ है ?
क्यों कुनीति दम्भी का राज ?
प्रेम सहिष्णुता दया दबी रे !
सच्चाई का बलात्कार
डर डर जनता खाती जीती
चंहू ओर बस हाहाकार
‘भ्रमर’ कहें जनता जनार्दन
शक्ति अपनी पहचानो
पांच साल से कुम्भकर्ण थे
जागो-देखो-कुछ कर डालो
छल से बच रे ! मीठा बोल
“वोट’ नकेल ‘मगर’ डालो …
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर ५ ”
जम्मू ३०.०३.२०१४
६.२० -६.५० पूर्वाह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
आदरणीय रविकर जी जन जागरण की ये रचना आप के मन को छू सकी और आप इसे चर्चा मंच पर ले गए बड़ी ख़ुशी हुयी आभार
ReplyDeleteभ्रमर५
प्रिय रविकर जी पहले तो प्रिय दोस्त एक नेक इंसान और हास्य कलाकार कवि अलबेला जी को हार्दिक श्रद्धांजलि बड़ा दुःख हुआ उनका असमय जाना सुन विश्वास ही नहीं हुआ प्रभु उनके करीबी जनों को साहस दे ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कारगर लिंक्स , मेरी रचना लाख हजार दिए विधवा को भी चुनाव के मद्देनजर आप ने चुना अच्छा लगा
भ्रमर ५