(photo with thanks from google/net)
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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मै पिजड़े का तोता हूँ
इधर से उधर
उधर से इधर
फुर्र -फुर्र उड़ता हूँ
चलता हूँ -घूमता हूँ
कसरत करता हूँ
उल्टा लटकता हूँ
सर्कस सा
मीठा-मीठा
मिट्ठू -मिट्ठू
बोलता
हूँ -बुलाता हूँ
'कुछ ' हैं अपने
समझते हैं मेरी भाषा
बोलते हैं मुझसे
बड़ा प्यारा लगता है
मै न्योछावर
अपनी गर्दन तक
दे देता हूँ
उनके हाथों में
मेरी मेहनत पे वे
डाल देते हैं कुछ
दाना
खाना-पानी
और 'कुछ' तीखी मिर्ची
बड़ा प्रेम है -मुझे -
'अपनों से '
ये मेरे 'कुछ अपने '
दूजे को देख चाँव -चाँव कर
भगा देता हूँ
चाहे मेरे माँ-बाप, सगे हों
चीखता हूँ -चिल्लाता हूँ
बड़ा मजा आता है
तब-मेरे 'अपनों ' को
कभी मेरे 'अपनों' का
मेरी तरफ
बढ़ता हाथ देख
न जाने क्यूँ ?
बड़ा डर लगता है
'अपनों ' से ही
चाँव-चाँव चीखता हूँ
फड़फड़ाता
हूँ
मन कहता है उड़ जाऊं
कहीं दूर गगन में
'पर' लगता है
'पर' क़तर गए हैं
'वे' नोंच न खाएं
अजीब दुनिया है
कौन है मेरा ??
मन मसोस कर रह जाता हूँ
फिर वही उछल-कूद
कसरत , पिजड़े में कैद
मिट्ठू -मिट्ठू -मीठा मीठा
बोलने लगता हूँ
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर '५
४.१०-४.४० मध्याह्न
करतारपुर -जालंधर पंजाब
२3.2.2014
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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