( photo with thanks from google/net)
मधुशाला में मधु
है उसकी
चोली दामन साथ
निभाती
दिल की हाल बयाँ करते हैं
चार यार संग
बन बाराती
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कभी हँसे
'कद' रोया करदे
नाच झूम मन
की सब
कह्दे
दर्द-दवा-है
वैद्य वहीं
सब
अपनी कहदे उनदी सुनदे
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एक 'कमाई'- बेंच
के लाता
चार मौज मस्ती
रत रहते
कहीं कोई खाली जो
आता
कभी धुनाई गिर
पड़ खाता
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एक-एक पैग
जो अंदर
जाते
भाव भरे हर
व्यथा सुनाते
सच्चा इंसा हूँ
मै यारों
'पागल' दुनिया घर फिर आते
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बात-बात में
बने बतंगड़
धक्का-मुक्की दिन
या रात
कभी ईंट तो
मारें कंकड़
गली मोहल्ला ज्यों
बारात
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'छज्जू' के हैं
छह-छह
कुड़ियां
दिखती सारी प्यारी गुड़िया
जाने कौन कर्म
ले आयीं
प्रेम में रत
या जहर
की पुड़िया
?
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'कुछ' कहती ये
बड़ा शराबी
'पी' लेता तो
बड़ी खराबी
'लाल' नहीं पाया
ना 'प्याला'
समझो ना फिर
-इसको घरवाला
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बद अच्छा बदनाम
बुरा है
किया हुआ हर
काम बुरा
है
'सच्चाई ' दबती फिर
जाती
गली मोहल्ले 'वही'
शराबी ....
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दुश्मन पागल, आवारा
सा चीखे
लट्ठ लिए पागल
सा घूमे
कभी किसी की
चोटी खींचे
मार के रोता
आँखें मींचे
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मै ना कोई
शराबी यारा
'बदचलनी ' के गम का मारा
भटकी बीबी कुड़ियां जातीं
नाक है कटती
शर्म है
आती
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'यार' बड़े उनके
हैं सारे
आँख दिखा मुझको धमकाते
रोता दिल 'नासूर'
अंग है
काट सकूं ना
-ना-पसंद
हैं
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माँ की सहमति
से बालाएं
सजधज मेकअप जाएँ-आयें
'पप्पा' को मिटटी
बुत समझें
चैटिंग पूरा दिवस
बिताएं
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उस दिन पुलिस
बुलायी थी
तू
बैठक दंड कराये
खुश थी
आज बनाऊंगा मै
मुर्गी
याद रखेगी जीवन
भर तू
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'छज्जू' बोला आज
हे मुई
मर जाऊंगा 'धर'
तारां ( बिजली) मै
रोज-रोज मरता
है क्यों
भय
मर जा -जा
मर तंग
मै हुयी
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लिए लट्ठ छत
के ऊपर
वो
गया थामने 'बिजली'
दामन
चीख पुकार शोर
रोना 'हुण'
लाठी ईंटों की
फिर वो
धुन
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पापा ! मम्मी ! , रोती
कुड़ियां
सच्ची-प्यारी-
मार भी खाईं
हंसी व्यस्त कुछ
कथा सुनाती
मै सच्ची हूँ
, अजब
ये दुनिया ....
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हुआ इकठ्ठा रात
मोहल्ला
'गबरू' कुछ फिर
चढ़े बढे
घर
'छज्जू' भागा कूद-फांदकर
कान पड़ी जब
पुलिस-पुलिस
तब
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कौन है सच्चा कौन है झूठा
?
दया रहम दोनों
पर आती
'रोजगार' ना कभी
'गरीबी'
'इन्हे' इसी मन्जिल
पहुंचाती
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'सपनों' में जीने
की खातिर
कभी दिखावा -'पेट'
की खातिर
लता-बेल 'कांटे'
चढ़ जातीं
या दल-दल
में फंसती
जातीं
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पति-पत्नी का
कैसा रिश्ता
??
मिले 'लाल' ही
है मन
मिलता
तन-मन प्रेम
सभी का
हिस्सा
नहीं प्रेम कल
का बस
किस्सा
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अपराधी हैं ताक
में रहते
बिगड़े सब, 'कुछ' तो
बिक जाए
कौड़ी भाव में
'स्वर्ण' मिले
तो
निज दूकान तो
सजती जाए
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दोस्त शराबी के
फिर आते
'साहस' दे गृह
फिर दे
जाते
'माँ' कहती हे!
पास पडोसी
ना जाओ ना
फिर 'वे'
आते
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बुलबुल कहाँ कैद
रह पाएं
खोलो पिजड़ा फिर
-फिर आयें
रहें कहाँ ना
साथी पाएं
निज करनी हैं
पर कतराए
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'रब' हे ! ऐसे
दिन ना
लाओ
शांति रहे, मन
-मंदिर सुन्दर
प्रेम-पूज्य मूरति
सीता-शुभ
राम 'परीक्षा-अग्नि'
न भाओ
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सत्कर्मों से मिला
सुघड़ तन
नरक वास हे!
क्यों मन
लाते
मनुज प्रेम 'मानव'
निज तन
कर
मृग मरीचिका क्यों
भरमाते ??
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( एक आँखों देखी
सच्ची व्यथा
कथा पर
आधारित, प्रयुक्त
सभी नाम
काल्पनिक हैं
और किसी
के जीवन
से कोई
सम्बन्ध नहीं
हैं , कुछ
शब्द पंजाबी
के प्रयुक्त
हैं )
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल
'भ्रमर'५
२०-०२.२०१४
करतारपुर जालंधर
पंजाब
१०-३०-११.१५ मध्याह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
सुन्दर-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
प्रिय रविकर जी रचना के दर्द और मर्म को आप ने समझा और सराहा सुखद लगा
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
प्रिय मित्रों इस रचना को आज के जागरण जंक्सन के टॉप ब्लॉग में स्थान दिया गया आप सभी पाठकों का बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteभ्रमर५
समय के साथ संवाद करती आपकी यह प्रस्तुित काफी सराहनीय है। मेरे नए पोस्ट DREAMS ALSO HAVE LIFE पर आपके सुझावों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी।
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