BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Monday, August 13, 2012

एक कवि बीबी से अकड़ा



एक कवि जब खिन्न हुआ तो  बीबी से वो अकड़ा
कमर कसा बीबी ने भी शुरू हुआ था झगडा
कितनी मेहनत मै करता हूँ
करूँ  कमाई सुनूं बॉस की रोता-गाता-आता
सब्जी का थैला लटकाए आटे में रंग आता
कभी कोयला लकड़ी लादूँ हुआ कोयला आता
दिन भर सोती भरे ऊर्जा लड़ने को दम आता ?
पंखा झल दो चाय बनाओ सिर थोडा सहलाओ
मीठी-मीठी बातें करके दिल हल्का कर जाओ
काम से फटता है दिमाग रे ! चोरों की हैं टेंशन
चोर-चोर मौसेरे भाई मुझसे सबसे अनबन
कितना ही अच्छा करता मै बॉस है आँख दिखाता
वही गधों को गले मिला के दारु बहुत पिलाता
उसके बॉस भी डरते उससे बड़ा यूनियन बाज
भोली- भाली  चिड़ियाँ चूँ ना करती- खाने दौड़े बाज
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बात अधूरी बीबी दौड़ी लिए बेलना हाथ
हे ! कवि तू अपनी ही गाये कौन सुने तेरी बात
सुबह पांच उठती सब करती साफ़ -सफाई घर की
तन की -मन की, पूजा करती घन-घन बजती घंटी
दौड़ किचेन में उसे नहाना कपड़ा  भी पहनाती
चोटी  करती ढूंढ के मोजा, बैज, रूमाल भी लाती
प्यार से पप्पी ले लाली को वहां तलक पहुंचाती
फिर तुम्हरे पीछे हे सजना बच्चों जैसा हाल
इतने भोले बड़े भुलक्कड होती मै बेहाल
रंग चोंग के सजा बजा के तुम को रोज पठाती
लुढके रोते से जब आते हो ख़ुशी मेरी सब जाती
दिन भर तो मै दौड़ थकी हूँ कुछ रोमांस तो कर लो
आओ प्रेम से गले लगाओ आलिंगन में भर लो !
हँसे प्यार से कली फूल ज्यों खिल-खिल-खिल खिल हंस लें
ननद-सास बहु-बात तंग मै दिल कुछ हल्का कर लें
छोटे देवर छोटे बच्चे सास ससुर सब काम
आफिस मेरा तुमसे बढ़कर यहाँ सभी मेरे बॉस
आफिस में ही ना टेन्शन है घर में बहुत है टेन्शन
कभी ख़ुशी तो कुढ़ -कुढ़ जीना यहाँ भी बड़ी है अनबन
दस-दस घंटे रात में भी तुम- हो कविता के पीछे
हाथ दर्द है कमर दर्द है आँख लाल हो मींचे
ये सौतन है ' ब्लागिंग' मेरी समय मेरा है खाती
इंटरनेट मोडेम मित्रों से चिढ़ है मुझको आती
मानीटर ये बीबी से बढ़ प्यार है तुमको आता
लगा ठहाके हंस मुस्काते रंक ज्यों कंचन पाता
लौंगा  वीरा और इलायची वो सुहाग की रात
हे प्रभु इनको याद दिला दे करती मै फरियाद
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कवि का माथा ठनका बोला मै सौ 'कविता' पा-लूं
'कविता' एक को तुम पाली हो, सुनता ही बस घूमूं
तुम थक जाती मै ना थकता, कविता मुझको प्यारी
पालो तुम भी दस-दस कविता तो अपनी हो यारी
एक कवि -लेखक  ही तो है- पूजा करता- सुवरन पाछे भागे
हीरा मोती और जवाहर-ठोकर मारे-प्रीत के आगे नाचे-हारे
दो टुकड़े -कागज पाती कुछ -वाह वाह सुनने को मरता
प्रीत मीत को गले लगाए दर्पण निज को आँका करता
खून पसीना अपना लाता मन मष्तिष्क लगाता
टेंशन-वेंशन सब भूले मै, सोलह श्रृंगार सजाता
सहलाता कोमल कर मन से, ढांचा बहुत बनाता
मै सुनार -लो-हार’, कभी मै प्रजापति बन जाता
आत्म और परमात्म मिलन से हंस गद-गद हो जाता
हे री ! प्यारी मधु तू मेरी मै मिठास भर जाता
सात जनम तुझको मै पाऊँ सुघड़ सुहानी तू है
साँस  हमारी जीवन साथी जीवन लक्ष्मी तू है
तब बीबी भी भावुक हो झर झर नैनन नीर बहाई
गले में वो बाला सी लटकी कुछ फिर बोल न पायी
दो जाँ एक हुए थे पल में, धडकन हो गयी एक
हे ! प्रभु सब को प्यार दो ऐसा, सब बन जाएँ नेक
'कविता' को भी प्यार मिले, भरपूर सजी वो घूमे
सत्य सदा हो गले लगाये, हर दिल में वो झूले
हम जब जाएँ भी तो 'हम' हों, 'मै' ना रहूँ अकेला
प्यारी जग की रीति यही है, दुनिया है एक मेला !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
८-८-२०१२
कुल्लू यच पी ९ पूर्वाह्न
ब्लागर-प्रतापगढ़ उ.प्रदेश भारत



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

5 comments:

  1. :-)
    बहुत बढ़िया कविवर....

    सादर
    अनु

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  2. ये भी खूब रही.... बढ़िया कविता :)

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  3. आदरणीया अनु जी आप भी कवियित्री ही हैं जय श्री राधे ..आभार आप का प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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  4. आदरणीया डॉ मोनिका जी कवि और बीबी के गिले शिकवे आप को पसंद आये सुन हर्ष हुआ बात बन गयी ..जय श्री राधे ..आभार आप का प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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  5. आदरणीया शास्त्री जी आभार आप का प्रोत्साहन हेतु तथा स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं आप तथा सभी मित्र मण्डली को भी ...सब का मंगल हो
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५