कितने अच्छे लोग हमारे
—————————-
कितने अच्छे लोग हमारे
भूखे-प्यासे -नंगे घूमें
लिए कटोरा फिरें रात-दिन
जीर्ण -शीर्ण – सपने पा जाएँ
जूठन पा भी खुश हो जाते
जीर्ण वसन से झांक -झांक कर
कोई कुमुदिनी गदरायी सी
यौवन की मदिरा छलकी सी
उन्हें कभी खुश जो कर देती
पा जाती है कुछ कौड़ी तो
‘प्रस्तर’ करती काल – क्रूर से
लड़-भिड़ कल ‘संसार’ रचेंगे
समता होगी ममता होगी
भूख – नहीं- व्याकुलता होगी
लेकिन ‘प्रस्तर’ काल बने ये
बड़े नुकीले छाती गड़ते
आँखों में रोड़े सा चुभ – चुभ
निशि -दिन बड़ा रुलाया करते
दूर हुए महलों में बस कर
भूल गए – माँ – का बलि होना
रोना-भूखा सोना – सारा बना खिलौना
कितने अच्छे लोग हमारे
नहीं टूट पड़ते ‘महलों’ में
ये ‘दधीचि’ की हड्डी से हैं
इनकी ‘काट’ नहीं है कोई
जो ‘टिड्डी’ से टूट पड़ें तो
नहीं ‘सुरक्षित’ – बचे न कोई
नमन तुम्हे है हे ! ‘कंकालों’
पुआ – मलाई वे खाते हैं
‘जूठन’ कब तक तुम खाओगे ??
कितनी ‘व्यथा’ भरे जाओगे ??
फट जाएगी ‘छाती’ तेरी
‘दावानल’ कल फूट पड़ेगा
अभी जला लो – झुलसा लो कुछ
काहे सब कल राख करोगे ?
अश्रु गिरा कुछ अभी मना लो
प्रलय बने कल ‘काल’ बनोगे ??
——————————————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर ‘५
४-४.४५ मध्याह्न
३१.५.२०१२ कुल्लू यच पी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,सुंदर रचना,,,,,badhai
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
मार्मिक प्रस्तुति |
ReplyDeleteकैसे कोई नकारे -
हकीकत है यही |
आभार ||
धीरेन्द्र जी रचना की प्रस्तुति अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी
ReplyDeleteभ्रमर ५
आभार
भ्रमर का दर्द और दर्पण
प्रिय रविकर जी रचना कुछ हकीकत दर्शा सकी सुन हर्ष हुआ धन्यवाद समर्थन हेतु
ReplyDeleteभ्रमर ५
आभार
भ्रमर का दर्द और दर्पण
gambheer sachet karti hui shasakt karteee shandaar rachna..anand aa gaye padhkar...sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
ReplyDeleteबहुत गहन एवं मार्मिक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसादर
अनु
हकीकत वयान एक मार्मिक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteआदरणीय डॉ मिश्र जी ...रचना आप के मन को छू सकी और गहन भाव आप ने देखे इसमें काश लोग भी जागरूक हों - .....जय श्री राधे
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
आदरणीया अनु जी रचना की मार्मिक अभिव्यक्ति आप के मन को छू सकी सुन ख़ुशी हुयी सच में ये विषमता और दर्द दिल को हिला देती है - .....जय श्री राधे
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५