ईश्वर-१ (कड़ी -३)
कठपुतली से बंधी डोर हम नाच रहे हैं
नटिनी सा
रंग -मंच जग सारा
अनचाहे-चाहे
हम क्या क्यों करते
उड़ता कोई
लगा के गोता खोज रहा जग सारा
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भ्रम
-विभ्रम से जो देखे जग
वही मान कर
सदा व्याख्या करता
कर
प्रत्यक्षीकरण समझता
गोल-गोल
मंडराता रहता
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मृग मरीचिका
नाग-मणि कस्तूरी क्यों है
जन्म
-मृत्यु होनी -अनहोनी उलझा जाता
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तेरे
कर्षण-आकर्षण में कितनी सृष्टि लटकी
कितने जीवन
जीव -आत्मा परमात्मा में बसते
कुछ पदार्थ
कण गुण -ढंग खोजे फूले नहीं समाते
कर प्रयोग
जादूगर जैसे महिमा अपनी गाते
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तेरे एक ही
पल में ईश्वर कितनी दुनिया रचें मिटें
जैसे मानव
जीव देखता कीट बहुत जनते-मरते
कितने उल्का
पिंड टूटते ग्रह नक्षत्र अंदाज नहीं
बरमूडा ट्रेन्गिल
है देखो ब्लैक होल की थाह नहीं
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सारा दृश्य
-अदृश्य है तेरा हम सब तेरे अंश ‘प्रभो’
तीन त्रिलोक तीन पग नापे शेषनाग बन
थामे
मत्स्य कूर्म कच्छप ना जाने कितने रूप दिखाते
हिरणाकश्यप - राम - कृष्ण कब महा-पुरुष बन आते !
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जो तेरी लीला को खोजे मन -मष्तिष्क चलाये
भव-बंधन से मुक्त हुए हंसता हरियाता जाए
भौतिक सुख से सूक्ष्म जगत में ध्यान योग से आये
बड़ा अलौकिक ज्योति देख वो दुनिया सब बिसराए
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कुछ अहम भरे मद-मत्त हुए लोगों से पाँव धुलाते
हे ! ‘ईश्वर’ कण-क्षण तू व्यापित तुझको जान न पाते
"एक" हैं सब बस
"एक" अंश हैं क्या ऊंचा क्या नीचा
कर सम्मान एक दूजे का ‘नेह’ से बस सब सींचे !
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सुरेन्द्र
कुमार शुक्ल "भ्रमर ५ "
कुल्लू यच
पी , 28.04.2012
6.0 -7.0 पूर्वाह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
बहुत ही सुंदर रचना,..इस कड़ी को क्रमशः जारी रखे
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
प्रिय धीरेन्द्र जी आभार प्रोत्साहन तथा सुझाव हेतु ..भ्रमर ५
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.....आभार...
ReplyDeleteआदरणीया महेश्वरी जी ईश महिमा आप को भायी सुन हर्ष हुआ आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति...!!!!!
ReplyDeleteसंजय भाई जय श्री राधे ..प्रभु की महिमा में रची ये रचना आप को अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी --आभार -भ्रमर ५
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