ईश्वर-१ (कड़ी -2)
वो ही हन्ता
वही नियंता
भू -रज -कण
जल में
माया मोह
जुगुप्सा इच्छा
काम क्रोध
है लोभ सभी के मन में !
---------------------------------------
वो चिन्तन
है वो अचिन्त्य है
लभ्य वही है
वो अलभ्य है
बुद्धि
विवेक ज्ञान गुण तर्पण
ब्रह्म
नियामक दिव्य तेज है
------------------------------------
निर्गुण
सगुण जीव जड़ जंगम
प्रेम सुधा
करुना रस घट है
झरना सरिता
गिरि कानन है
वो अथाह
सागर है
--------------------------------
आदि शक्ति
है अन्वेषी सचराचर है
उल्का
धूम-केतु गढ़ नक्षत्र है
भक्ति यही
वैराग्य यही है
अचल सचल
रफ़्तार यही है
-----------------------------------
नीति नियम
आदर्श मूल्य ये
बड़ा
अपरिमिति अगणित रहस्य है
प्राण वायु
घट-घट में व्यापित
गति विराम
कारक प्रेरक है
---------------------------------------
यही अजन्मा
ये अमर्त्य है
परे बुद्धि
के सब -समर्थ है
मै अज्ञानी
मूढ़ सकूं ना सोच तुझे जगदीश्वर
दशों दिशाओं
जित देखूं मै ईश्वर ईश्वर !
--------------------------------------------
मानव हूँ मन
ही भरमू बस
ये जीवन तन
-मन अर्पण सब
मन मष्तिष्क
में ज्योति बना रह
सूक्ष्म जगत
या सूक्ष्म मिलाकर !
---------------------------------------------
दृग जो देखे
मन जो सोचे
लाख चौरासी
योनी भटक जो खोज करे
तुम बिन हे
! प्रभु ईश्वर मेरे
आस्तिक
-नास्तिक खोज कहीं कब क्या है पाए
माया मोह के
उलझन उलझा घूमे लौटे
पंछी सा उड़ -उड़ जब हारे इसी
"नाव" फिर आये
27.04.2012- 6.00-7 poorvahn-kullu h p
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
माया मोह के उलझन उलझा घूमे लौटे
ReplyDeleteपंछी सा उड़उड़ जब हारे इसी"नाव"फिर आये,
बहुत बढ़िया भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति, भ्रमर जी,बधाई
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
sampurn duniya ke astitv ka darashn ......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDelete--
आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उऊपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!
शास्त्री जी आभार आप का .आप का आना बहुत सुख दे जाता है ये कहाँ कम है .आइये प्रभु का गुणगान करते बढे चलें ...भ्रमर ५
ReplyDeleteप्रिय धीरेन्द्र जी आभार आप का .रचना पसंद आई सुन ख़ुशी हुयी .आइये प्रभु का गुणगान करते बढे चलें ...भ्रमर ५
ReplyDeleteआदरणीय रजनी जी आभार आप का .प्रभु में सारी दुनिया तो बसी ही हुयी है ...रचना पसंद आई सुन ख़ुशी हुयी .आइये प्रभु का गुणगान करते बढे चलें ...भ्रमर ५
ReplyDeleteजीवन की वो सर्वशक्तिमान ही धुरी है
ReplyDeleteडॉ मोनिका जी सटीक और सत्य वचन आप के वो परमेश्वर ही इस जीवन की धुरी है ...जगदीश्वर है ..आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५