यहीं खिलेंगे फूल
——————–
क्या सरकार है कैसे मंत्री
काहे का सम्मान ??
भिखमंगे जब गली गली हों
भ्रष्टाचारी आम !
——————————
माँ बहनें जब कैद शाम को
भय से भागी फिरतीं
थाना पुलिस कचहरी सब में -
दिखे दु:शासन
बेचारी रोती हों फिरतीं
——————————-
बाल श्रमिक- होटल ढाबों में
मैले –कुचले- भूखे -रोते
अधनंगे भय में शोषित ये
बच्चे प्यारे वर्तन धोते
——————————
इंस्पेक्टर लेबर आफीसर
बैठ वहीं मुर्गा हैं नोचे
खोवा दूध मिलावट सब में
फल सब्जी सब जहर भरा
खून पसीने के पैसे से
क्यों हमने ये तंत्र रचा ??
———————————–
जिसकी लाठी भैंस है उसकी
लिए तमंचा गुंडे घूमें
चुन -चुन हमने- बेटे भेजे
जा कुछ रंग दिखाए
नील में –गीदड़- जा रंगा वो
कठपुतली बन नाचे जाए
———————————
गली -गली जो गला फाड़ते
बदलूँ दुनिया कल तक बोला
मिट्ठू मिट्ठू जा अब बोले
कभी बने बस -भोला-गूंगा
——————————
रिश्ता नाता माँ तक भूला
कैसा नामक हराम !
पढ़ा पढाया गुड गोबर कर
देश न आया काम !
मुंह में राम बगल में छूरी
क्या दुनिया – हे राम !
किस पर हम विस्वास करें हे
नींदे हुयी हराम !
—————————–
आओ भाई सब मिल करके हम
अपना बोझ उठायें
जो हराम की खाएं उनसे
सब हिसाब ले आयें
——————————–
वीर प्रतापी जनता सारी
तुम सब ही हो सच्चे राजा
कर बुलंद आवाजें अपनी
देखो कैसे जग थर्राता
सहो नहीं हे सहो नहीं तुम
एक बनो सब -सच्चे-भ्राता
——————————-
जो काँटा बोओ -पालोगे
यही गड़ें- बन शूल
कहें “भ्रमर” -सूरज- हे निकलो
करो भोर हे ! समय अभी अनुकूल
करो सफाई घर घर अपने
काँटा फेंको दूर
चैन से कोमल शैय्या सो लो
यहीं खिलेंगे फूल
——————–
क्या सरकार है कैसे मंत्री
काहे का सम्मान ??
भिखमंगे जब गली गली हों
भ्रष्टाचारी आम !
——————————
माँ बहनें जब कैद शाम को
भय से भागी फिरतीं
थाना पुलिस कचहरी सब में -
दिखे दु:शासन
बेचारी रोती हों फिरतीं
——————————-
बाल श्रमिक- होटल ढाबों में
मैले –कुचले- भूखे -रोते
अधनंगे भय में शोषित ये
बच्चे प्यारे वर्तन धोते
——————————
इंस्पेक्टर लेबर आफीसर
बैठ वहीं मुर्गा हैं नोचे
खोवा दूध मिलावट सब में
फल सब्जी सब जहर भरा
खून पसीने के पैसे से
क्यों हमने ये तंत्र रचा ??
———————————–
जिसकी लाठी भैंस है उसकी
लिए तमंचा गुंडे घूमें
चुन -चुन हमने- बेटे भेजे
जा कुछ रंग दिखाए
नील में –गीदड़- जा रंगा वो
कठपुतली बन नाचे जाए
———————————
गली -गली जो गला फाड़ते
बदलूँ दुनिया कल तक बोला
मिट्ठू मिट्ठू जा अब बोले
कभी बने बस -भोला-गूंगा
——————————
रिश्ता नाता माँ तक भूला
कैसा नामक हराम !
पढ़ा पढाया गुड गोबर कर
देश न आया काम !
मुंह में राम बगल में छूरी
क्या दुनिया – हे राम !
किस पर हम विस्वास करें हे
नींदे हुयी हराम !
—————————–
आओ भाई सब मिल करके हम
अपना बोझ उठायें
जो हराम की खाएं उनसे
सब हिसाब ले आयें
——————————–
वीर प्रतापी जनता सारी
तुम सब ही हो सच्चे राजा
कर बुलंद आवाजें अपनी
देखो कैसे जग थर्राता
सहो नहीं हे सहो नहीं तुम
एक बनो सब -सच्चे-भ्राता
——————————-
जो काँटा बोओ -पालोगे
यही गड़ें- बन शूल
कहें “भ्रमर” -सूरज- हे निकलो
करो भोर हे ! समय अभी अनुकूल
करो सफाई घर घर अपने
काँटा फेंको दूर
चैन से कोमल शैय्या सो लो
यहीं खिलेंगे फूल
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२.४.१२ कुल्लू यच पी
७-७.३९ पूर्वाह्न
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२.४.१२ कुल्लू यच पी
७-७.३९ पूर्वाह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
shukla ji, bahut hee sundar muktak likhe hain jo dikhaate hain aaj ke yug ki sachchaai....mere yahaan aane ke liye shukriyaa aapka!
ReplyDeleteएक और अच्छी प्रस्तुति |
ReplyDeleteध्यान दिलाती पोस्ट |
बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.................
ReplyDeleteकड़क एवं सार्थक लेखन हेतु बधाई स्वीकारें....
सादर.
अनु
बहुत बढ़िया.................
ReplyDeleteकड़क एवं सार्थक लेखन हेतु बधाई स्वीकारें....
सादर.
अनु
वाह बहुत उम्दा प्रस्तुति!
ReplyDeleteअब शायद 3-4 दिन किसी भी ब्लॉग पर आना न हो पाये!
उत्तराखण्ड सरकार में दायित्व पाने के लिए भाग दौड़ में लगा हूँ!
शास्त्री जी मुबारक हो आप को तब तो ..लेकिन कौन सा दायित्व ...राज है
ReplyDeleteक्या ? जय श्री राधे सूरज जी ...
बधाई हो
भ्रमर ५
प्रिय रविकर जी आभार आप का इस रचना को आप ने चुना मन अभिभूत हुआ जय श्री राधे
ReplyDeleteभ्रमर ५
प्रिय रविकर जी आभार आप का इस रचना को आप ने चुना मन अभिभूत हुआ जय श्री राधे
ReplyDeleteभ्रमर ५
प्रिय दिनेश जी बहुत दिन बाद आप आये बड़ी ख़ुशी हुयी मै भी व्यस्त था अब मिलते रहेंगे ..प्रोत्साहन हेतु आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
अनु जी जय श्री राधे ..कड़क और कोमल दोनों भाव आप ने समझा और सराहा सुन ख़ुशी हुयी
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
प्रिय शुक्ल जी रचना में कुछ सार्थकता दिखी सुन ख़ुशी हुयी अपना स्नेह बनाये रखें
ReplyDeleteभ्रमर ५
सुन्दर रचना मनोभावों का प्रतिरूप बनकर बहती हुयी
ReplyDeleteसरकार तो बीमार है ...
ReplyDeleteतीखी व्यंग की धार है ....
blog par achchikavitaye hai
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी ..बहुत सुन्दर और सार्थक रचना...
ReplyDeleteप्रिय उदय वीर जी रचना आप के मन को छू सकी सुन हर्ष हुआ काश ये भावनाएं अपने समाज की विषमता को दूर कर सकें -जय श्री राधे
ReplyDeleteभ्रमर ५
आदरणीया हरकीरत हीर जी -जय श्री राधे ..सच कहा आप ने सरकार तो आँखें नहीं खोल रही बीमारी की जोरदार दवा की जरूरत है इसे ..आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
आदरणीय कमलेश जी जय श्री राधे ---इस ब्लॉग पर रचनाओं को आप ने सराहा प्रोत्साहन दिया मन गद गद हुआ स्वागत है आप का कृपया आते रहें .आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
आदरणीया माहेश्वरी जी जय श्री राधे --रचना सार्थक लगी और आप के मन को प्रभावित कर सकी सुन मन अभिभूत हुआ अपना स्नेह बनाये रखे .आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
Aapki post ek dam sahi hai abhar is post liyè:-)
ReplyDeleteसवाई सिंह जी समर्थन हेतु आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५