BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Tuesday, September 27, 2011

मन अनुरागी करे अभी- जो चाहे कल

मन अनुरागी करे अभी- जो चाहे कल

हिम हेम हवा अंबर शंबर
शिशिर तिमिर प्राणद  को ठगने
द्विज जुटे -भीड़ ज्यों रचा स्वयम्वर
कमल-नयन नग श्री को भरने
अज लाखे अपाय वीथि अचरज से
अरुण अर्क ला ज्ञान दे कैसे
सप्त रंग रथ चढ़ रवि आये
वंजर सागर धुंध गयी सब जीवन पाए
वीर अमर हे धरा तुम्हारी क्रांति मांगती
रचो नया माँ प्रेरक देखो शांति बांटती
पर्वत से ऊँचाई ले लो सागर से गहराई
फूलों से मुस्कान बसा लो पेड़ों से हरियाली
कल क्या मिला -मिलेगा क्या कल ??
मन अनुरागी करे अभी- जो चाहे कल
लोभ द्वेष पाखंड खंड कर बने अखंड
रोज जगाये सूरज -ज्यों रचता ब्रह्माण्ड !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
यच पी ८.३० पूर्वाह्न
२८.०९.२०११




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५