आइये थोडा हट के कुछ देखें २६ और ३२ रुपये में दिन भर खाना खा लें बच्चों को पढ़ा लें संसार चला लें प्यार कर लें हनीमून भी मना लें ………कैसा है ये प्यार ……………….
क्या आयोग मंत्री तंत्री नेता के दिल और दिमाग नहीं होता ………….
ऊपर से कुदरत की कहर गिरा हुआ घर बना लें रोज जगह बदलते हुए भागते फिरें जो बच जाएँ ….
अश्क नैन ले -मोती रही बचाती
इठलाती -बलखाती
हरषाती-सरसाती
प्रेम लुटाती
कंटक -फूलों पे चलती
पथरीले राहों पे चल के
दौड़ी आती
तेरी ओर
“सागर” मेरे-तेरी खातिर
क्या -क्या ना मै कर जाती
नींद गंवाती -चैन लुटाती
घर आंगन से रिश्ता तोड़े
“अश्क” नैन ले
“मोती” तेरी रही बचाती
दिल क्या तेरे “ज्वार” नहीं है
प्रियतम की पहचान नहीं है
चाँद को कैसे भुला सके तू
है उफान तेरे अन्तर भी
शांत ह्रदय-क्यों पड़े वहीं हो ?
तोड़ रीति सब
बढ़ आओ
कुछ पग -तुम भी तो
बाँहे फैलाये
भर आगोश
एक हो जाओ
समय हाथ से
निकला जाए !!
———————-सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”५
८.३० पूर्वाह्न यच पी २२.०९.२०११
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
क्या आयोग मंत्री तंत्री नेता के दिल और दिमाग नहीं होता ………….
ऊपर से कुदरत की कहर गिरा हुआ घर बना लें रोज जगह बदलते हुए भागते फिरें जो बच जाएँ ….
अश्क नैन ले -मोती रही बचाती
इठलाती -बलखाती
हरषाती-सरसाती
प्रेम लुटाती
कंटक -फूलों पे चलती
पथरीले राहों पे चल के
दौड़ी आती
तेरी ओर
“सागर” मेरे-तेरी खातिर
क्या -क्या ना मै कर जाती
नींद गंवाती -चैन लुटाती
घर आंगन से रिश्ता तोड़े
“अश्क” नैन ले
“मोती” तेरी रही बचाती
दिल क्या तेरे “ज्वार” नहीं है
प्रियतम की पहचान नहीं है
चाँद को कैसे भुला सके तू
है उफान तेरे अन्तर भी
शांत ह्रदय-क्यों पड़े वहीं हो ?
तोड़ रीति सब
बढ़ आओ
कुछ पग -तुम भी तो
बाँहे फैलाये
भर आगोश
एक हो जाओ
समय हाथ से
निकला जाए !!
———————-सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”५
८.३० पूर्वाह्न यच पी २२.०९.२०११
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अगर आपकी उत्तम रचना, चर्चा में आ जाए |
ReplyDeleteशुक्रवार का मंच जीत ले, मानस पर छा जाए ||
तब भी क्या आनन्द बांटने, इधर नहीं आना है ?
छोटी ख़ुशी मनाने आ, जो शीघ्र बड़ी पाना है ||
चर्चा-मंच : 646
http://charchamanch.blogspot.com/
बत्तीसी दिखलाय के, पच्चीस कमवाय के
ReplyDeleteआयोग आगे आय के, खूब हलफाते हैं |
दवा दारु नेचर से, कपडे फटीचर से
मुफ्तखोर टीचर से, बच्चा पढवाते हैं |
सेहत शिक्षा मिल गै , कपडा लत्ता सिल गै
छत तनिक हिल गै, काहे घबराते हैं ?
गरीबी हटाओ बोल, इंदिरा भी गईं डोल,
सरकारी झाल-झोल, गरीब घटाते हैं ||
प्रिय रविकर जी शानदार क्यों नहीं शुक्रवार जरुर मिलने की कोशिश होगी ...आप की मेहनत और रंग लाये ...आनंद आये ..आप जमें रहें ..
ReplyDeleteआप की वाणी में यों ही सरस्वती विराजमान रहें
भ्रमर ५
बहुत खूब लिखा है |
ReplyDeleteआशा
आदरणीया आशा जी अभिवादन रचना पसंद आई और आप से प्रोत्साहन मिला ख़ुशी हुयी
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
bahut khoobsurat,behtreen bhaav.bahut pasand aai yeh rachna.aabhar.
ReplyDeleteआदरणीय राजेश कुमारी जी रचना पसंद आई सुन हर्ष हुआ बहुत बहुत आभार आप का
ReplyDeleteभ्रमर ५