आँचल से मै
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सजी सेज पर
तुम बैठे थे
दुल्हन मै थी
कोने बैठी
नई-नवेली
एक पहेली
चले बूझने
जब प्रियतम तुम
अनसुलझी सी
मै -और गूढ़ हो
आँचल से मै
दिया बुझाये
अंधकार में
दुबक गयी थी
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१६.०४.2011
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अच्छी भाव पूर्ण रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
आदरणीया आशा जी धन्यवाद छोटी प्यारी रचना के भाव अच्छे लगे जानकर हर्ष हुआ
ReplyDeleteमहावीर जयंती पर शुभ कामनाएं
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५