BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, April 15, 2011

आँचल से मै दिया बुझाये


आँचल से मै
दिया बुझाये 





















(photo with thanks from other source)
सजी सेज पर
तुम बैठे थे 
दुल्हन मै थी
कोने बैठी 
नई-नवेली
एक पहेली 
चले बूझने 
जब प्रियतम तुम
अनसुलझी सी
मै -और गूढ़ हो 
आँचल से मै
दिया बुझाये 
अंधकार में
दुबक गयी थी

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१६.०४.2011



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

2 comments:

  1. अच्छी भाव पूर्ण रचना |बधाई
    आशा

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  2. आदरणीया आशा जी धन्यवाद छोटी प्यारी रचना के भाव अच्छे लगे जानकर हर्ष हुआ
    महावीर जयंती पर शुभ कामनाएं

    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५