चंदा जैसे दूर गगन में
रह भी कितने प्यारे
सांसो में मेरी बसते हो
मन में कर उजियारे !!
अगर पास –तुम- मेरे- होते
तो मै होती धवल चांदनी
पपीहा सी मै रहूँ निहारे
कितने मौसम बीते !!
कली के जैसे बंद पड़ी मै
जो ‘प्रिय’ मुझको छूते
खिल ‘गुलाब’ सी खुश्बू देती
भौंरे सा तुम अरे पिया-
फिर- कैद यहीं हो जाते !!
‘कोयल’ सी मै कूकती होती
जो तुम पास हमारे !!
(photo with thanks from other source)
अगर कहीं तुम
अगर कहीं तुम
इस बगिया या उस उपवन मे
होते- तो -मै -प्रियतम -
बनी ‘मोरनी’
नाच -नाच खुश होती !!
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इस 'सर' मे जो
परछाईं भी
मेरे ‘हंस’ की -
तेरी ‘हंसिनी’
(photo with thanks from other source)
‘कमल’ के जैसे
खिली हुयी
'तर'-'तर' के- फिर
सबका 'मन' हर लेती !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
२४.४.२०११ जल पी बी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
नमस्कार,
ReplyDeleteआपका गुलाब व मोर दोनों ही पसंद आये है
अभिनन्दन है जाट देवता आप का हमारे ब्लॉग पर और तीनो ब्लॉग पर पधारें अपना सुझाव व् समर्थन भी दें
ReplyDeleteअच्छा लगा ये सुन की गुलाब और मोर पसंद आये पर रचना कैसी ??
जाट देवता क्यों?? नाम क्यों नही ??
शुक्लभ्रमर ५