उगता सूरज -धुंध
में
कर्म फल -गीता
क्रिया
-प्रतिक्रिया
न्यूटन के नियम
आर्किमिडीज के
सिद्धांत
पढ़ते-डूबते-उतराते
हवा में
कलाबाजियां खाते
नैनो टेक्नोलोजी
में
खोजता था -नौ ग्रह
से आगे
नए ग्रह की खोज
में जहां
हम अपने वर्चस्व
को
अपने मूल को -बीज
को
सांस्कृतिक धरोहर
को
किसी कोष में रख
बचा लेंगे सब
-क्योंकि
यहाँ तो उथल -पुथल
है
उहापोह है ...
सब कुछ बदल डालने
की
होड़ है
-कुरीतियाँ कह
अपनी प्यारी
संस्कृति और नीतियों की
चीथड़े कर डालने की
जोड़ -तोड़ है
बंधन खत्म कर
उच्छ्रिंख्ल
होने की
लालसा बढ़ी है
पश्चिम को देख
पूरब भूल गया
-उगता सूरज
धुंध में खोता जा
रहा है
कौन सा नियम है ?
क्या परिवर्तन है ?
सब कुछ तो बंधा है गोल-गोल है
अणु -परमाणु -तत्व
हवा -पानी -बूँदें
सूरज चंदा तारे
अपनी परिधि अपनी
सीमा
जब टूटती है
-हाहाकार
सब बेकार !
आँखों से अश्रु
छलक पड़े
अब घर में वो
अकेला बचा था
सोच-व्याकुलता-अकुलाहट
माँ-बाप भगवान को
प्यारे
भाई-बहन दुनिया से
न्यारे
चिड़ियों से
स्वतंत्र हो
उड़ चले थे
...............
फिर उसे रोटियाँ
भूख-बेरोजगारी
मुर्दे और गिद्ध
सपने में दिखने
लगते
और सपने चकनाचूर
भूख-परिवर्तन
-प्रेम
इज्जत -आबरू
धर्म -कानून-अंध
विश्वास
सब जंजीरों में
जकड़े
उसे खाए जा रहे थे
.....
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३.०२-३.४५
पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी
१३.०२.२०१२
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
भूख-परिवर्तन -प्रेम
ReplyDeleteइज्जत -आबरू
धर्म -कानून-अंध विश्वास
सब जंजीरों में जकड़े
उसे खाए जा रहे थे .....
बहुत बेहतरीन सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
बड़ा विकट है भ्रमर के, मन का यह आक्रोश |
ReplyDeleteधुंध छटेगी शीघ्र ही, रहे सुरक्षित कोष |
रहे सुरक्षित कोष, दोष सब बने नकलची |
विज्ञापन का दौर, दिखें चीजें न सच्ची |
उहापोह चित्कार, पाप का अंत निकट है |
कैलासी नटराज, हमारा बड़ा विकट है ||
adarniya bhramar ji apki yeh kriti bilkul sachchi aur satik hai.padhkar bahut accha laga. asha hai isi tarah ki krition se samaj ko sachchai ka bodh karate rahenge
ReplyDeletekavita shukla
rae barely
adarniya bhramar ji apki yeh kriti bilkul sachchi aur satik hai.padhkar bahut accha laga. asha hai isi tarah ki krition se samaj ko sachchai ka bodh karate rahenge
ReplyDeletekavita shukla
rae barely
adarniya bhramar ji apki yeh kriti bilkul sachchi aur satik hai.padhkar bahut accha laga. asha hai isi tarah ki krition se samaj ko sachchai ka bodh karate rahenge
ReplyDeletekavita shukla
rae barely
adarniya bhramar ji apki yeh kriti bilkul sachchi aur satik hai.padhkar bahut accha laga. asha hai isi tarah ki krition se samaj ko sachchai ka bodh karate rahenge
ReplyDeletekavita shukla
rae barely
sunder prastuti
ReplyDeleteआदरणीय धीरेन्द्र जी , शास्त्री जी , रविकर जी , डॉ आशुतोष जी और प्रिय कविता आप सब का बहुत बहुत आभार प्रोत्साहन हेतु .....
ReplyDeleteशास्त्री जी आप ने इस रचना को चर्चा मंच के लिए चुना हमारी युवा पीढ़ी की व्यथा को दर्शाया ...बड़ी ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५
अद्भुत शब्द संयोजन
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