BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Saturday, April 7, 2012

होरी खेलि रही सरकार

होरी खेलि रही सरकार
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अपनी अपनी थाप ढोल पे
रोज बजाये जाती है
चोर-चोर मौसेरे भाई
गाना-गाये जाती है
रंग -विरंगे मदिरालय का
उदघाट्न करवाती है
बेंच -खोंच सब नशे सिखाकर
अपना-धंधा चलवाती है
कर में “कर” को भरे हुए
जोड़ -तोड़ घर बाहर करती
घर तो अपना भर डाली ?
अब बाहर जा पहुंचाती है
बनी पूतना सजी -संवारी
बच्चों के संग घुल मिल खेले
चीर- हरण में जुआ खेलती
दरबारी संग हंस हंस झूमे
गुझिया सा चूसे जनता को
“काला” रंग लगाती है
भंग पिला के मोह भी लेती
जबरन हंसा दिखाती है
फाड़-फाड़ कर कपडे तन के
बड़ी नुमाईश -भिखमंगों की
पत्र -पत्रिका अख़बार में
नित नूतन छपवाती है
कर गरीब रैली भूखों को
यहाँ -वहां दौड़ाती है
एक बार का भोजन डाले
पैदल -पथ भरमाती है
लट्ठ मार होली भी खेले
लाल रंग हो गली गली
खुद तो ऊंचे चढ़ी हुयी है
नशा अहम् रंग रंगी हुयी
ना जाने कब गले मिलेगी ??
परिजन सब को भूल चली
यही कृत्य सब परिजन कर दें
तो हो कैसा हाल ?
काम न आयें भ्रष्टाचारी
नोचें सिर बेहाल !
होरी खेलि रही सरकार
गठरी बाँधे आयें साजन
गिद्ध दृष्टि है -ले जाए उस पार
कितने गए खजाने लेकर
भव -सागर के पार
पढ़ी -लिखी है ?? मूर्ख बनाए ?
या अंधी सरकार !!
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भ्रमर ५
कुल्लू यच पी
७.०४.२०१२
६.३५-७.१० पूर्वाह्न


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

21 comments:

  1. सार्थक और सामयिक प्रविष्टि, आभार.

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  2. बहुत बढ़िया....................

    सार्थक रचना.
    सादर.

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  3. बहुत बढ़िया..............

    सार्थक और सटीक रचना..............

    सादर.

    अनु

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  4. होरिहार सरकार की, महिमा गाई खूब ।
    हाथी शेर-सियार बक, रंग-भंग में डूब ।


    रंग-भंग में डूब, डुबाते भारत प्यारा ।
    जनता जाये ऊब, उबारे कौन दुबारा ।

    यहाँ भ्रमर का दर्द, हदें हर एक पार की ।
    उड़े व्यवस्था उधर, होरिहार सरकार की ।।

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  5. प्रिय शुक्ल जी रचना आप को सटीक लगी और कुछ कह सकी व्यवस्था पर सुन ख़ुशी हुयी आभार
    भ्रमर ५

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  6. रंग-भंग में डूब, डुबाते भारत प्यारा ।
    जनता जाये ऊब, उबारे कौन दुबारा ।
    प्रिय रविकर जी ये जनता इतनी जल्दी ऊबेगी नहीं कुछ कर के ही दम लेगी होरिहार सरकार की -प्रोत्साहन हेतु आभार
    भ्रमर ५

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  7. bahut hi sundar prastuti ....badhai shukl ji.

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  8. सुन्दर सटीक रचना,बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,.....
    समर्थक बन गया हूँ आपभी बने मुझे खुशी होगी
    पोस्ट पर आके लिए बहुत२ आभार,..सुरेन्द्र जी,

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  9. डॉ मोनिका जी रचना की प्रस्तुति सतील लगही लिखना सार्थक रहा -जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  10. चुनने वाले हम ही हैं। बार-बार धोखा खाकर सरकार को कोसना लोकतंत्र और अपने विवेक-दोनों के साथ अन्याय है।

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  11. मुझे भी लगता है रमण सर ठीक कह रहे है !
    आभार अच्छी लगी रचना !

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  12. यही तो विडम्बना है और कटु यथार्थ भी।

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  13. कटु यथार्थ....बहुत सुन्दर और सटीक रचना...

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  14. karara vyang .......satya ko ukerti hui.......

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  15. राधा रमन जी कैलाश जी सुमन जी निशा जी मनोज जी हार्दिक अभिवादन और आभार ..बात तो सच है चुनते हम हैं और धोखा भी खाते हैं लेकिन जब धोखा खा ही लिए तो सम्हलने के लिए समझाना और जगाना भी तो होगा न विकल्प नहीं है रिजेक्सं का सो मजबूरी में चुन लेते हैं ,,,चुने गए अपनी आत्मा को समझें देश के प्रति
    जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  16. प्रिय नवीन जी और धीरेन्द्र जी आभार ..प्रोत्साहन और समर्थन के लिए ....,चुने गए अपनी आत्मा को समझें देश के प्रति
    जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  17. आज की व्यवस्था पर यह कविता भरी-पूरी टिप्पणी है. बहुत खूब.

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  18. sunder bhav aaj ka darshan karte huye badhai
    rachana

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  19. भ्रमर जी नमस्कार, मैं जेजे मंच से दिव्या
    मुझे अभी किसी ने बता की मेरी एक रचना किसी ने अपने नाम से पोस्ट करी है वहाँ देखा तो सही पाया मेरी उस रचना को दो अलग अलग ब्लॉग मे पोस्ट किया गया है एक जगह तो कमेन्ट दिया है मगर इधर दूसरी पोस्ट मे कमेन्ट नहीं दे पा रही हूँ आप का कमेन्ट देख के आप के ब्लॉग तक आई हूँ आप से एक अनुरोध है कृपया उस ब्लॉग मे मेरी बात पहुंचा दीजिए मैं आप को अपने ब्लॉग का भी और दूसरी ब्लॉग का भी लिकं दे रही हूँ | ये लिंक मेरे ब्लॉग का हैhttp://div81.jagranjunction.com/2011/02/15/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%9D%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%8B-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%87-%E0%A4%A4%E0%A5%8B-%E0%A4%95/ ................ और ये उस साहित्यिक चोर मोहदय का http://dineshpareek19.blogspot.in/2011/03/blog-post_13.html
    आप की अति कृपया होगी
    दिव्या div81

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  20. div81 के द्वारा April 19, 2012
    आदरणीय भ्रमर जी, सादर प्रणाम
    तवरित कार्यवाही (बोलग पोस्ट) के लिए आप का आभार | इन महाशय ने मेरी एक नहीं चार कविताओ को अपने ब्लॉग मे अपने नाम से पोस्ट किया है | मुझे लगता है इन्हें लिखना नहीं आता अब तक की जितनी भी रचना इन्होने पोस्ट की है वो सब चोरी की ही होगी | कल बहुत दुःख हुआ मुझे इस तरह की घटना को देख के ब्लोगिंग छोड़ने का मन बना लिया है | बस ये महाशय अपने ब्लॉग से मेरी रचनाओ को हटा दे |
    आपका इस सहयोग के लिए ह्रदय से आभार

    surendr shukl bhramar5 के द्वारा April 19, 2012
    दिव्या जी ये शर्म की बात तो है ही लेकिन आप चिंता न करें जब एक बार पता चल गया है तो कुछ न कुछ परिणाम अवश्य निकला जाएगा ..ब्लागिंग छोड़ने का मन कभी मत कीजियेगा -लोग तो यही चाहते हैं सताओ चुराओ और लोग हार मान कर मैदान से भाग जाएं …होसले बुलंद रहना चाहिए देखिये सारे शुभ चिन्तक लोग अपना कार्य शुरू कर दिए हैं –
    जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५