BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Tuesday, July 23, 2013

ईमाँ नेकी की गठरी ले किसे थमाऊँ ?


 

   ईमाँ नेकी की गठरी ले किसे थमाऊँ ?

क्रंदन करते आया जग में

अमृत रस का पान मिला

स्नेह जलधि सा ममता पाया

जीवन रस सुख सार मिला

भोलापन ले साँच संग मैं बढ़ा चला

उठा गिरा फिर कड़वाहट का भान मिला

कभी अकेला कभी साथ मैं कितने अपने

कली फूल कुछ मधु पराग संग

भ्रमर बना बहुविधि गुँजन गान किया

कभी थपेड़े अंधड आँधी कभी बवंडर

धूल धूसरित उलझा निकला बढा चला

शुभ घड़ियां त्योहार मिलन आलिंगन देखा

विरह कभी निस्तेज धधकता ज्वाला उर में

इंद्रधनुष तो कारे बड़े भयावह बादल

सावन पपिहा मोर सुहाने सपने झूले

कभी पतंग सा उड़ा गगन में मुक्त फिरा मैं

कभी बोझ से दबा हुआ मन आकुल व्याकुल

कल खुशगवार था कलह कहीं तम निशा न छाए

बिछडे मेले से गए चले ना लौट के आए

एकाकी पथ पग लहूलुहान कंधे उचकाए

हाथ पसारे जोडे साहस क्या मंजिल पाए ?

लिए ठाठरी दम भरते अंतिम दम तक मैं

बढ़ता जाऊँ ना घबराऊँ ईमाँ नेकी की गठरी ले

किसे थमाऊँ ? आज कौन है अभिमन्यु दल ?

सारे योद्धा तो गए उधर कब तक जी पाऊँ

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर

09.20-10.10 पूर्वाह्न

हबीबवाला – बरेली मार्ग (उ.प्र.)

(लौह पथ गामिनी में)

 दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, June 25, 2013

छटपटाया बहुत चाँद

छटपटाया बहुत चाँद
-------------------------
रात बारिस बहुत जोर की थी प्रिये
देख चेहरा तेरा चाँद में खो गया
चाँद भी टिमटिमाता रहा रात भर
सौ सौ बादल उसे घेर आते रहे


फब्तियां कुछ कसे दूर से उड़ चले
कुछ चिढाये डरा जैसे छू ही लिए
लाल भूरे कई दौड़े छू के गए
कारे कजरारे गरजे डराते रहे
छटपटाया बहुत चाँद निकला जरा
राह थोड़ी कभी मुझसे मिलता रहा
छुप भी जाता कभी श्वेत आँचल रहा
मुझसे छुप छुप के नजरें मिलाता रहा
दूर मजबूर बंधन मै जकड़ा रहा
कल्पनाओं भरे ख्वाब खेला बढ़ा


मै चकोरा  अरे चाँद तू है मेरा
गूंगा गुड खाए मस्ती में बढ़ता रहा
बोल ना मै  सका गर्जनाएं बढीं
वर्जनाएं बढीं पग भी ठिठके रहे


छटपटाता रहा चाँद डरता रहा
लाख मिन्नत भरी राह करता रहा
काले बादल अरे ! दानवों से बढे
तम था गहराया लील चन्दा लिए
चाँद आता है क्यों चांदनी देने को ?
हो अँधेरा यहाँ रातें काली रहें
देव -मानव रहें  डर से भयभीत हो
दैत्य दानव करें राज कलयुग ही हो

चमकी आँखें मेरी कौंध बिजली पडी
चाँद मुस्काया बांछें मेरी खिल गयीं
----------------------------------------
all the photos taken from google//net with thanks
------------------------------------------------------
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
७. ५ ० पूर्वाह्न -८. १ ० पूर्वाह्न

१४ . ६ . २ ० १ ३



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, June 11, 2013

एक तल्ले पे था चाँद तो उन दिनों

पर कटे से पड़े तडफडाते रहे 
इश्क़ में उनके ऐसे फँसे दोस्तोँ !



( photo with thanks from google/net)

रूबरू वो हुये चार पल के लिए 
जाम नैनों अधर के पिला दोस्तों !

मयकशी में मुकद्दर के मारे तभी 
लूट हँसते चले रोते हम दोस्तों !

मुड़  के देखे कभी दिल को छलनी किये 
पैठ दिल में बना वो गए दोस्तों !

पंछी उड़ता रहा दाना चुगता रहा 
हम ठगे से खड़े देखते दोस्तों !

एक तल्ले पे था चाँद तो उन दिनों 
सौ अटारी चढ़ा अब लगे दोस्तों !

दिन में दिखता  नहीं रात अठखेलियाँ 
बादलों को खिलौना बना दोस्तों !

मुझसे बादल कई छू गये ख्वाब ले 
अपनी हस्ती मिटा खो गए दोस्तों !

चाँद पूरा कभी ये अधूरा करे 
रौशनी कर अमावस दिखा दोस्तों !

हम भी सूरज थे कल आज जुगनू बने 
खुश मगर चाँद दिखता  तो  है दोस्तों !

हूँ  'भ्रमर' पर-कटा कैद उनकी पडा 
इश्क काँटों में खुशबू भी है दोस्तों ! 


सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५ 
कुल्लू हि प्र. 
८ जून 2 0 1 3 -12 .39 पूर्वाह्ण  


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं