ईमाँ नेकी की गठरी ले किसे थमाऊँ ?
क्रंदन करते आया जग में
अमृत रस का पान मिला
स्नेह जलधि सा ममता पाया
जीवन रस सुख सार मिला
भोलापन ले साँच संग मैं बढ़ा चला
उठा गिरा फिर कड़वाहट का भान मिला
कभी अकेला कभी साथ मैं कितने अपने
कली फूल कुछ मधु पराग संग
भ्रमर बना बहुविधि गुँजन गान किया
कभी थपेड़े अंधड आँधी कभी बवंडर
धूल धूसरित उलझा निकला बढा चला
शुभ घड़ियां त्योहार मिलन आलिंगन देखा
विरह कभी निस्तेज धधकता ज्वाला उर में
इंद्रधनुष तो कारे बड़े भयावह बादल
सावन पपिहा मोर सुहाने सपने झूले
कभी पतंग सा उड़ा गगन में मुक्त फिरा मैं
कभी बोझ से दबा हुआ मन आकुल व्याकुल
कल खुशगवार था कलह कहीं तम निशा न छाए
बिछडे मेले से गए चले ना लौट के आए
एकाकी पथ पग लहूलुहान कंधे उचकाए
हाथ पसारे जोडे साहस क्या मंजिल पाए ?
लिए ठाठरी दम भरते अंतिम
दम तक मैं
बढ़ता जाऊँ ना घबराऊँ ईमाँ
नेकी की गठरी ले
किसे थमाऊँ ? आज कौन है अभिमन्यु दल ?
सारे योद्धा तो गए उधर
कब तक जी पाऊँ
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘ भ्रमर’
09.20-10.10 पूर्वाह्न
हबीबवाला – बरेली मार्ग
(उ.प्र.)
(लौह पथ गामिनी में)
बहुत ही सुंदर आदरणीय भ्रमर जी!
ReplyDeleteप्रिय जवाहर भाई जी जय श्री राधे आप आये मन खुश हुआ अपना स्नेह प्रदान करते रहें यों ही
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५