आंगन सूना
बिन तुलसी के
-------------------------------
भोर हुआ,
थी रंग -बिरंगी आसमान में छाई बदली
इंद्रधनुष
था गगन-धरा मंडप पर शोभित
पुष्प-अधर
कलियाँ मुस्कातीं - जैसे गातीं
मन-भावन हे
अनुपम छटा से दिल था मोहित !
--------------------------------------------------
स्वर्ण झील
ज्यों भारत माता उसमे अंकित
स्वर्ण रश्मि
बरसाते सूरज कण-कण झंकृत
जय-जय-जय
उद्घोष सा कलरव- थे सातों सुर
नाना वर्ण की चिड़ियाँ पूरब- स्वर्ग जमीं पर
----------------------------------------------
ऊंचे-ऊंचे
पर्वत वन थे - शांत झील को घेरे
प्रहरी वन
जी जान निछावर करते जैसे वर्फ-गोद में सोये
माँ से शीतलता
पाने को -योग ध्यान में खोये
पाते और लुटाते
पल -पल पाप हरे ज्यों तेरे -मेरे
---------------------------------------------------
पर्यावरण
को शुद्ध रखे हम आओ पौधे और लगाएं
स्वच्छ वायु
में सांस भी ले लें जीवन-जल भी पाएं
कंक्रीट का
जंगल विन जल पशु -पक्षी ना आएं
आंगन सूना
-विन तुलसी के -दीपक कल फिर कौन जलाए ?
-----------------------------------------------------------
सुरेन्द्र
कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू हिमाचल
भारत
६ अप्रैल
२०१६
८.३० पूर्वाह्न
-९ पूर्वाह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
प्रेरक
ReplyDeleteबेहतरीन काव्य , अभिवादन
ReplyDeleteराकेश भाई रचना पर प्रोत्साहन के लिए आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
आदरणीय महेश कुशवंश जी स्वागत है आप का, रचना आप के मन को छू सकी और आप ने प्रोत्साहन दिया आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
सच ही तो कहा है आपने कि आंगन सूना तुलसी बिन। भ्रमर जी, मेरी तुलसी में कीड़ा लग गया है। काेंपलें मुरझाने लगी हैं। जिस जगह तुलसी के बीज होते हैं, उसमें भी कीड़े हैं। कीड़े दूर करने का कोई उपाय हो तो बताइए।
ReplyDelete