माया का जंजाल बनाये
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मृग नयनी
दो नैन तिहारे
प्यारे प्यारे
प्यार लुटाते
भरे कुलांचे
इस दिल उस दिल
घूम रहे हैं
मोहित करते
माया का जंजाल बनाये
सारे तन-मन
जीत रहे हैं
फिर भी अकुलाये
ये नैना
बिन बोले
कहते कुछ बैना
ढूंढ रहे क्या ?
प्रेम पिपासु
जंगल में भी
आग लगी है
है बारूद घुला
उस झरना
तरु पौधे सब
झुलस रहे हैं
भाग रहे सब
शांति कहाँ है
गाँव नगर या
शहर कहीं से
लगता-
मानव यहां भी आया
धुंआ उठा है
कोहरा छाया
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
९.२५-९.५७ २५.०१.२०१५
कुल्लू हिमाचल भारत
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
आदरणीय राजेन्द्र भाई आप का बहुत बहुत धन्यवाद रचना को मान देने के लिए
ReplyDeleteभ्रमर ५