दुर्लभ
किस्म - नारी ??
उस मज़ार पर भीड़ लगी थी
नाच रही बालाएं - सज - धज
आरकेष्ट्रा - संगीत बज रहा
'दाद'-
दुलार - देखने का मन
खिंचा गया मैं !!
दिया मुबारक -और बधाई
वाह री बेटी !!!
कितना सुन्दर -माँ -बाबा ने
रीति सिखाई !!
कला -धर्म -संगीत है साधा >>>
तू पागल लगता है आधा <<<
"चच्चू" हम 'बेटी' -ना -'बेटे'
जब बालाएं हम सा बनती
रूप -रंग सब बदल रही हैं
'लूट' रही हैं - क्षेत्र हमारे
सोचा हमने - यहाँ पधारे
निर्जन - वन में !
धर्म स्थल में !!
'जटा' बढ़ाये !!!
नारी बनकर - रूप निखारे
नाच रही हूँ - मोह रही हूँ
लुटा रही हूँ -प्यार छुपा जो आँचल मेरे
आगे की पीढ़ी तो जाने
'दुर्लभ किस्म'
है - नारी - भाई
इसे बचा लें !!
रूप रंग - कुछ - लाज - हया
पहचानें आयें !!!
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर५
एक रेलगाड़ी की यात्रा में
12.02.2011
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-04-2015) को "अरमान एक हँसी सौ अफ़साने" {चर्चा - 1943} पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर और सार्थक
ReplyDeleteआखिर भीड़ में देखने वाले कौन..
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
आदरणीय शास्त्री जी रचना आप के मन को छू सकी और आप ने इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया बहुत ख़ुशी हुयी आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
हिमकर भाई रचना आप के मन को छू सकी और आप ने प्रोत्साहन दिया आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
राजीव भाई रचना आप को सुन्दर लगी और आप ने प्रोत्साहन दिया आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
जी कविता जी सच कहा आप ने भीड़ में कौन देखता और ध्यान देता है आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
प्रिय सतीश जी आप आये बहुत अच्छा लगा जय श्री राधे आप से परतोसाहन मिला ख़ुशी हुयी
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५