BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Thursday, April 9, 2015

'दुर्लभ किस्म' है - नारी - भाई ?

 

दुर्लभ किस्म - नारी ??
उस मज़ार पर भीड़ लगी थी
नाच रही बालाएं - सज - धज
आरकेष्ट्रा - संगीत बज रहा
'दाद'- दुलार - देखने का मन
खिंचा गया मैं !!
दिया मुबारक -और बधाई
वाह री बेटी !!!
कितना सुन्दर -माँ -बाबा ने
रीति सिखाई !! 
कला -धर्म -संगीत है साधा >>>
तू पागल लगता है आधा <<<
"चच्चू" हम 'बेटी' -ना -'बेटे'
जब बालाएं हम सा बनती 
रूप -रंग सब बदल रही हैं
'लूटरही हैं - क्षेत्र हमारे
सोचा हमने - यहाँ पधारे 
निर्जन - वन में !
धर्म स्थल में !!
'जटाबढ़ाये  !!!
नारी बनकर - रूप निखारे
नाच रही हूँ - मोह रही हूँ
लुटा रही हूँ -प्यार छुपा जो आँचल मेरे
आगे की पीढ़ी तो जाने
'दुर्लभ किस्म' है - नारी - भाई
इसे बचा लें   !!
रूप रंग - कुछ - लाज - हया
 पहचानें  आयें !!!

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर५
एक रेलगाड़ी की यात्रा में
12.02.2011



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

9 comments:

  1. हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-04-2015) को "अरमान एक हँसी सौ अफ़साने" {चर्चा - 1943} पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुंदर और सार्थक

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  3. आखिर भीड़ में देखने वाले कौन..

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  4. बहुत खूब
    मंगलकामनाएं आपको !

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  5. आदरणीय शास्त्री जी रचना आप के मन को छू सकी और आप ने इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया बहुत ख़ुशी हुयी आभार
    भ्रमर ५

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  6. हिमकर भाई रचना आप के मन को छू सकी और आप ने प्रोत्साहन दिया आभार
    भ्रमर ५

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  7. राजीव भाई रचना आप को सुन्दर लगी और आप ने प्रोत्साहन दिया आभार
    भ्रमर ५

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  8. जी कविता जी सच कहा आप ने भीड़ में कौन देखता और ध्यान देता है आभार
    भ्रमर ५

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  9. प्रिय सतीश जी आप आये बहुत अच्छा लगा जय श्री राधे आप से परतोसाहन मिला ख़ुशी हुयी
    आभार
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५