BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, April 24, 2015

ये लाल कभी माँ कह दे



ये लाल कभी माँ कह दे 

देदीप्यमान है मेरा 
ये घर -ये महल 
नौकर चाकर सब 
लेकिन मै घुट रही हूँ 
रोज-रोज -सुन 
कौन बाप -कैसी माँ 
सब मतलब के यार हैं 
कोई भंडुआ..
कोई छिनाल है 
और न जाने क्या क्या ...
बरबराता-कानों में जहर घोलता 
बाप का -मेरा गला दबाने दौड़ता 
और फिर गिर जाता कभी 
निढाल-बेबस -बेहोश 
मै उसके कपडे -जूते उतार
अब भी -प्यार से 
सुला देती हूँ 
लेकिन चाँद -खिलौना दिखा 
ना खिला पाती 
ना लोरी गा सुला पाती 
हाय नारी ये क्या -
तेरा हाल है ?
ये "लाल" कभी 
माँ कह दे 
दिल में मलाल है !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर "
५.३५ पूर्वाह्न जल पी बी  




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

3 comments:

  1. अहा क्‍या बात है। बहुत खूब।

    ReplyDelete
  2. आदरणीया कहकशां जी रचना आप को अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी आभार प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

    ReplyDelete
  3. भूगोल बिगाड़ के रख दिया भ्रष्टाचारियों ने ...
    सटीक रचना

    ReplyDelete

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५