BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Monday, January 19, 2015

अश्क नैन ले -मोती रही बचाती



अश्क नैन ले -मोती रही बचाती

इठलाती -बलखाती 
हरषाती-सरसाती
प्रेम लुटाती
कंटक -फूलों पे चलती 
पथरीले राहों पे चल के 
दौड़ी आती 
तेरी ओर
"सागर" मेरे-तेरी खातिर 
क्या -क्या ना मै कर जाती  
नींद गंवाती -चैन लुटाती 
घर आंगन से रिश्ता तोड़े 
"अश्क" नैन ले 
"मोती" तेरी रही बचाती 
दिल क्या तेरे "ज्वार" नहीं है 
प्रियतम की पहचान नहीं है 
चाँद को कैसे भुला सके तू 
है उफान तेरे अन्तर  भी 
शांत ह्रदय-क्यों पड़े वहीं हो ?
तोड़ रीति सब 
बढ़ आओ 
कुछ पग -तुम भी तो 
बाँहे फैलाये 
भर आगोश  
एक हो जाओ 
समय हाथ से 
निकला जाए !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर"५
८.३० पूर्वाह्न जल पी बी 
०६.०८.२०११ 
 




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

6 comments:

  1. भावमय करते शब्‍द ... मन को छूती प्रस्‍तुति आभार

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  2. प्रिय संजय भाई रचना पर आप का प्रोत्साहन मिला मन गदगद हुआ
    आभार
    भ्रमर ५

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  3. आप का प्रोत्साहन मिला मन गदगद हुआ आभार

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...वसंत पंचमी की शुभकामनाएँ!!

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  5. प्रिय हिमकर जी आभार प्रोत्साहन हेतु आप को भी वसंत पंचमी की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५