अश्क नैन ले -मोती रही बचाती
इठलाती -बलखाती
हरषाती-सरसाती
प्रेम लुटाती
कंटक -फूलों पे चलती
पथरीले राहों पे चल के
दौड़ी आती
तेरी ओर
"सागर"
मेरे-तेरी खातिर
क्या -क्या ना मै कर जाती
नींद गंवाती -चैन लुटाती
घर आंगन से रिश्ता तोड़े
"अश्क"
नैन ले
"मोती"
तेरी रही बचाती
दिल क्या तेरे "ज्वार" नहीं
है
प्रियतम की पहचान नहीं है
चाँद को कैसे भुला सके तू
है उफान तेरे अन्तर भी
शांत ह्रदय-क्यों पड़े वहीं हो ?
तोड़ रीति सब
बढ़ आओ
कुछ पग -तुम भी तो
बाँहे फैलाये
भर आगोश
एक हो जाओ
समय हाथ से
निकला जाए !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल
"भ्रमर"५
८.३० पूर्वाह्न जल पी बी
०६.०८.२०११
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
भावमय करते शब्द ... मन को छूती प्रस्तुति आभार
ReplyDeleteप्रिय संजय भाई रचना पर आप का प्रोत्साहन मिला मन गदगद हुआ
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर .....
ReplyDeleteआप का प्रोत्साहन मिला मन गदगद हुआ आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...वसंत पंचमी की शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteप्रिय हिमकर जी आभार प्रोत्साहन हेतु आप को भी वसंत पंचमी की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं
ReplyDeleteभ्रमर ५