BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Saturday, November 15, 2014

बेवफा

बेवफा ( खेल समझकर दिल क्यों  तोड़ जाते हैं वे ) 
घर फूटा मन टूटा बिच्छिन्न हुए अरमान 
मैंने पाया विश्वास गया
ठेस लगी टूटा अभिमान 
(photo with thanks from google/net)

एकाकी जीवन रोता दिल
नासूर बनी खिलती कलियाँ 
जल जाएँ न सुन विरह गीत 
मिट जाएँ न अभिशप्तित परियां 
लूट मरोड़ मुकर क्यों जाते
ऐ सनम जो तुझसे दिल न लगाते
बाँध ले घुंघरू तज गेह नेह
सुख भर ले नित दिल टूट देख
ना धूमिल कर छवि नारी की
दिल दे न चढ़े बलि बेचारी
प्यार बना आधार बचाए घर कितने
सोने पर सोना छोड़
ले देख जरा तुझसे कितने

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
राय बरेली - प्रतापगढ़

७.९.१९९३ 



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

10 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

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  2. आदरणीय शास्त्री जी रचना आप के मन को छू सकी और आप ने इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया ख़ुशी हुयी आभार
    भ्रमर ५

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  3. आदरणीया डॉ मोनिका जी
    रचना पर आप का समर्थन और प्रोत्साहन मिला ख़ुशी हुयी
    आभार
    भ्रमर ५

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  4. प्रिय हिमकर जी
    रचना पर आप का स्नेह और प्रोत्साहन मिला ख़ुशी हुयी
    आभार
    भ्रमर ५

    ReplyDelete
  5. प्रिय ओंकार जी
    स्वागत है आप का यहां
    रचना पर आप का स्नेह और प्रोत्साहन मिला ख़ुशी हुयी
    आभार
    भ्रमर ५

    ReplyDelete
  6. जी विनय जी हम जरूर देखेंगे और आप का स्वागत है यहां पधारने हेतु आभार
    भ्रमर ५

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  7. सुख-शान्ति, समृद्धि, प्रसन्नता एवं आरोग्य की मंगलकामनाओं के साथ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!!

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  8. प्रिय हिमकर जी आप तथा सभी मित्रों को नव वर्ष की ढेर सारी शुभ कामनाएं
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५