बेवफा (
खेल समझकर दिल क्यों तोड़ जाते हैं वे )
घर फूटा मन टूटा बिच्छिन्न हुए अरमान
मैंने पाया विश्वास गया
एकाकी जीवन रोता दिल
नासूर बनी खिलती कलियाँ
जल जाएँ न सुन विरह गीत
मिट जाएँ न अभिशप्तित परियां
लूट मरोड़ मुकर क्यों जाते
ऐ सनम जो तुझसे दिल न लगाते
बाँध ले घुंघरू तज गेह नेह
सुख भर ले नित दिल टूट देख
ना धूमिल कर छवि नारी की
दिल दे न चढ़े बलि बेचारी
प्यार बना आधार बचाए घर कितने
सोने पर सोना छोड़
ले देख जरा तुझसे कितने
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
राय बरेली - प्रतापगढ़
७.९.१९९३
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी रचना आप के मन को छू सकी और आप ने इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया ख़ुशी हुयी आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
आदरणीया डॉ मोनिका जी
ReplyDeleteरचना पर आप का समर्थन और प्रोत्साहन मिला ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५
प्रिय हिमकर जी
ReplyDeleteरचना पर आप का स्नेह और प्रोत्साहन मिला ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५
प्रिय ओंकार जी
ReplyDeleteस्वागत है आप का यहां
रचना पर आप का स्नेह और प्रोत्साहन मिला ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५
जी विनय जी हम जरूर देखेंगे और आप का स्वागत है यहां पधारने हेतु आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
सुख-शान्ति, समृद्धि, प्रसन्नता एवं आरोग्य की मंगलकामनाओं के साथ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!!
ReplyDeleteप्रिय हिमकर जी आप तथा सभी मित्रों को नव वर्ष की ढेर सारी शुभ कामनाएं
ReplyDeleteभ्रमर ५
ReplyDeleteHey friend, it is very well written article, thank you for the valuable and useful information you provide in this post. Keep up the good work! FYI, please check these
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Dhruv