(4) परख PARAKH
हर दाने नहीं हों खाने को ,हर आंसू न व्याधि बंटाने को,
पहचाने सभी को-जाने को , हर वार हो कश्ती डुबाने को !
हर दांत न होते खाने को , जुगनू न लगाये आग कभी ,
हर हाथ न उठते देने को , धुन यूं न बसायें बाग़ कभी !
तलवार भी क्या जब धार नहीं , वह आग नहीं जब आंच नहीं ,
वह माँ क्या जिसमे प्यार नहीं , संतान बुरी- तब बाँझ भली !!
सब देखे ना ही सच होता ,रश्मि आये ना हाथ कभी,
घर आये सभी मेहमान न होता, ऊँगली पकडे ले बांह कभी !!
मोम छुएं तो कठोर लगे , हिम भी बन जाता पानी है ,
चोर न देखे चोर लगे , प्रिय भी बन जाता पापी है !!
हर उल्का ना सब नाश करे , चपला न दिखाए राह सदा ,
वह ममता ना बस प्यार करे, अबला न बनाये भाग्य सदा !!
सरसों से दिखते तारे भी, नजदीक नहीं हैं पहाड़ सभी ,
महलों में बसे ही सितारे नहीं, संगीत नहीं लय -ताल नहीं !!
तीखी भी औषधि होती है -विष दन्त नहीं हों सांप सभी,
विष की औषधि विष होती है ,भ्रमर सभी लो भांप भली !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१५.०४.२०११
(लेखन -२५.०२.१९९४ कोडरमा झारखण्ड)
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
प्रेरक प्रस्तुति
ReplyDeleteSteek Panktiyan
ReplyDeleteबढ़िया है...
ReplyDeleteराकेश जी प्रोत्साहन के लिए आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
डॉ मोनिका जी रचना के भाव आप को अच्छे और सटीक लगे सुन हर्ष हुआ
ReplyDeleteभ्रमर ५
डॉ मोनिका जी रचना के भाव आप को अच्छे और सटीक लगे सुन हर्ष हुआ
ReplyDeleteभ्रमर ५
हिमकर भाई रचना बढ़िया लगी सुन ख़ुशी हुयी आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५