BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, May 30, 2014

मुस्कुराती दामिनी सी छल रही हो...


(photo with thanks from google/net)

जुल्फ हैं लहराते तेरे बदली जैसे
और तुम …..
मुस्कुराती दामिनी सी छल रही हो...
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केशुओं से झांकते तेरे नैन दोनों
प्याले मदिरा के उफनते लग रहे
काया-कंचन ज्यों कमलदल फिसलन भरे
नैन-अमृत-मद ये तेरा छक पियें
बदहवाशी मूक दर्शक मै खड़ा
तुम इशारों से ठिठोली कर रही हो
जुल्फ हैं लहराते तेरे बदली जैसे
और तुम ..
मुस्कुराती दामिनी सी छल रही हो
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इस सरोवर में कमल से खेलती
चूमती चिकने दलों ज्यों हंसिनी
नीर झर-झर तेरे लव से यों झरें
चूम कर मोती बनाऊं मन करे
मै हूँ चातक तू है चंदा दूर क्यों
छटपटाता चांदनी से मन जले
जुल्फ हैं लहराते तेरे बदली जैसे
और तुम ..
मुस्कुराती दामिनी सी छल रही हो
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इस सरोवर में झुकी जब खेल खेले लहर से
देख सब कुछ कांपते अधरों से सारे ये कमल
तू कमलिनी राज सुंदरता करे दिखता यहां
तार वीणा ....मेरा मन झंकृत करे
होश में आऊँ तो गाऊँ प्रेम-धुन मै री सखी
काश नजरें हों इनायत इस नजर से आ मिलें
जुल्फ हैं लहराते तेरे बदली जैसे
और तुम ..
मुस्कुराती दामिनी सी छल रही हो
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भोर की स्वर्णिम किरण तू स्वर्ण सी
है सुनहली सर की आभा स्वर्ग सी
देव-मानव सब को प्यारी अप्सरा सी
नृत्य छन-छन पग के घुँघरू जब करें
मन मयूरा नाचता विह्वल सा ये
मोरनी सी तू थिरकती क्यों फिरे
जुल्फ हैं लहराते तेरे बदली जैसे
और तुम ..
मुस्कुराती दामिनी सी छल रही हो
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर '५
कुल्लू हिमाचल २४.५.२०१४
५.४५-६.१० पूर्वाह्न


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

3 comments:

  1. प्रिय चतुर्वेदी जी आभार प्रोत्साहन हेतु रचना आप को लाजबाब लगी लिखना सार्थक रहा
    भ्रमर 5

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५