कर विकास की बात उदर-भर
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हिन्दू मुस्लिम उंच नीच का
भाई अब ना पाठ पढ़ाओ
मतदाता है भाग्य विधाता
पढ़ लिख जागा होश में आओ
कर विकास की बात उदर-भर
रोटी-कपड़ा-घर ले आओ
आंधी में जो नहीं उजड़ना
देख उधर कंकाल में जीवन
कैसी छवि ये गढ़ी हुयी ??
समता मूलक जब समाज का
सूरज रोशन कल होगा
सप्त अश्व का रथ दौड़ेगा
सिर अपना ऊंचा होगा
वंजर ऊसर जल विहीन है
धरती माता जली जा रही
कहीं एक गज जमीं की खातिर
‘शव’ ले माता विलख रही
लड़ो नहीं ना बनो निठल्ले
कर्म भूमि अब डट भी जाओ
कुछ करके ही खाना सीखो
कर्म -शर्म से ना घबराओ
जो जन जहां खड़ा रच सकता
बुद्धि विवेक तू मन चित लाओ
‘एक’ कमाएं दस बस खाएं
पतन-गर्त मूरख मत जाओ
भारत-भू रज धरे माथे
चढ़ सोपान विश्व छा जाओ
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( all photos from google/net with thanks )
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू हिमाचल
18-मई -२०१४
१०-१०.३५ मध्याह्न
रविवार
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति ...
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ReplyDeleteप्रिय हिमकर जी रचना पर आप का प्रोत्साहन मिला ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५