मजदूरचौक में लगी भीड़मै चौंका , कहीं कोई घायलअधमरा तो नहीं पड़ाकौतूहल, झाँका अन्दर बढ़ावापस मुड़ा कुछ नहीं दिखा'बाबू' आवाज सुनपीछे मुड़ाइधर सुनिये !उस मुटल्ले को मत लीजियेचार चमचे साथ है जातेदलाल है , हराम की खातेएक दिन का कामचार दिन में करेगानशे में दिन भर बुत रहेगाबच्चे को बुखार हैबीबी बीमार हैरोटी की जरुरत हमें है बाबूहम हैं, हम साथी ढूंढ लेंगेमजदूरी भले बीस कम- देनाकुछ बीड़ी फूंकतेतमाखू ठोंकतेकुछ खांसते हाँफतेकुछ हंसी -ठिठोली करतेचौक को घेर खड़े थेमानों कोई अदालत होनिर्णय लेगीफैसला रोटी के हक़ काआँख से पट्टी हटा देखेगीटूटी -फूटी साइकिलेंटूटी -सिली चप्पलेंपैरों में फटी विवाईमैले -कुचैले कपडेमाथे पे पड़ी सिलवटेंघबराहटमजदूर बिकते हैंश्रम भूखा रहता हैबचपन बूढा हो रहाकहीं बाप सा बूढाकमर पर हाथ रखेसीधे खड़े होने की कोशिश में लगाएक के पीछे , चार भागतेफिर मायूस , सौदा नहीं पटा काश कोई मालिक मिलताचना गुड खिलाता चाय पिलातानहीं तो भैया , काका बोलताबतियाता व्यथा सुनताऔर शाम को हाथ में मजदूरी ...किस्मत के मारे बुरे फंसेकंजूस सेठ से पाला पड़ाबीड़ी पीने तक की मोहलत नहींझिड़कियां , गालियां पैसा कटा -मिल जाएँ तो अहसान लदा कातर नजरें मेरा मन कचोट गयींमैंने बड़ी दरियादिली का काम कियाबीस रुपये निकाल हाथ में दियाखा लेना , काका मै चलाबाबू ! गरीब के साथ मजाक क्यों ?किस्मत भी ,आप भी, सभीकाम दीजिये नहीं ये बीस ले लीजियेभूखे पेट का भी सम्मान हैअभिमान है श्रम कामै सोचता रहाऔर वो अपनी पोटली खोलएक कोने में बैठ गयाकुछ दाने, चबाने- खानेन जाने क्योंमेरे कानों में शब्द गूंजते रहेकाम दीजियेकाम दीजियेबच्चे को बुखार हैमजदूर इतने ..मजबूर कितने ......================सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५११.१५-११.४५ मध्याह्न२६.२.२०१४करतारपुर जालंधर पंजाब
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं



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