ईमाँ नेकी की गठरी ले किसे थमाऊँ ?
क्रंदन करते आया जग में
अमृत रस का पान मिला
स्नेह जलधि सा ममता पाया
जीवन रस सुख सार मिला
भोलापन ले साँच संग मैं बढ़ा चला
उठा गिरा फिर कड़वाहट का भान मिला
कभी अकेला कभी साथ मैं कितने अपने
कली फूल कुछ मधु पराग संग
भ्रमर बना बहुविधि गुँजन गान किया
कभी थपेड़े अंधड आँधी कभी बवंडर
धूल धूसरित उलझा निकला बढा चला
शुभ घड़ियां त्योहार मिलन आलिंगन देखा
विरह कभी निस्तेज धधकता ज्वाला उर में
इंद्रधनुष तो कारे बड़े भयावह बादल
सावन पपिहा मोर सुहाने सपने झूले
कभी पतंग सा उड़ा गगन में मुक्त फिरा मैं
कभी बोझ से दबा हुआ मन आकुल व्याकुल
कल खुशगवार था कलह कहीं तम निशा न छाए
बिछडे मेले से गए चले ना लौट के आए
एकाकी पथ पग लहूलुहान कंधे उचकाए
लिए ठाठरी दम भरते अंतिम
दम तक मैं
बढ़ता जाऊँ ना घबराऊँ ईमाँ
नेकी की गठरी ले
किसे थमाऊँ ? आज कौन है अभिमन्यु दल ?
सारे योद्धा तो गए उधर
कब तक जी पाऊँ
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘ भ्रमर’
09.20-10.10 पूर्वाह्न
हबीबवाला – बरेली मार्ग
(उ.प्र.)
(लौह पथ गामिनी में)
सुन्दर प्रस्तुति है आदरणीय-
ReplyDeleteआभार आपका -
bahut sundar ..............
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ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (29.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
ReplyDeleteBlogger J.L. Singh Singh said...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर आदरणीय भ्रमर जी!
23 July 2013 8:35 pm Delete
प्रिय जवाहर भाई रचना को सराहा आप ने मन ख़ुशी हुआ
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
प्रिय रविकर जी रचना आप के मन को छू सकी ख़ुशी हुयी
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
प्रिय राकेश जी रचना को आप से मान मिला हर्ष हुआ
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
प्रिय नीरज जी रचना को आप से मान मिला और आपने ब्लॉग प्रसारण पर इसे स्थान दिया सुन हर्ष हुआ
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर ! आदरणीय भ्रमर जी .
ReplyDeleteराजीव कुमार झा(http://dehatrkj.blogspot.com)
अभिनन्दन आप का ..रचना को आप ने सराहा अच्छा लगा ...
ReplyDeleteभ्रमर ५