कल चला था पुनः राह में मै उसी
दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए …
रौशनी छन के आई गगन से कहीं
दिल के अंधियारे दीपक जला के गयी
राह टेढ़ी चढ़ाई मै चढ़ता गया
दो दिलों की सी धड़कन मै सुनता रहा
कोई सपनों में रंगों को भरता रहा
रागिनी-मोहिनी-यामिनी-श्यामली
मेंहदी गोरी कलाई पे रचता रहा
छम -छमा-छम सुने पायलों की खनक
माथ बिंदिया के नग में था उलझा हुआ
इंद्र-धनुषी छटा में लिपट तू कहीं
उन सितारों की महफ़िल सजाती रही
लटपटाता रहा आह भरता रहा
फिर भी बढ़ता रहा रंग भरता रहा
तूने लव बनाये थे कुछ तरु वहीं
चीड-देवदार खामोश हारे सभी
तेरी जिद आगे हारे न लौटा सके
ना तुझे-ना वो खुशियाँ- न रंगीनियाँ
पलकों के शामियाने बस सजे रह गए
ना वो ‘दूल्हा’ सजा , ना वो ‘दुल्हन’ सजी
मंच अरमा , मचल के कतल हो गए
वर्फ से लदे गिरि पर्वत वहीं थे कफ़न से
दिखे ! चांदी की घाटियाँ कब्र सी बन गयीं
सुरमई सारे पल वे सुहाने सफ़र
सारे रहते हुए -बिन तुम्हारे सखी !
सारे धूमिल हुए -धूल में मिल गए
सिसकियाँ मुंह से निकली तो तरु झुक गए
फूल कुछ कुछ झरे ‘हार’ से बन गए
कौंधी बिजली तू आयी -समा नैन में
प्रेम -पाती ह्रदय में जो रख तू गयी
मै पढता रहा मै सम्हलता रहा डग भरता रहा
अश्रु छलके तेरी प्रीती में जो सनम
मै पीता रहा पी के जीता रहा
झील सी तेरी अंखियों में तरता रहा
तेरी यादों का पतवार ले हे प्रिये
तेरे नजदीक पल-पल मै आता रहा
दीप पल-पल जला-ये बुझाता रहा
आँधियों से लड़ा – मै जलाता रहा !
कल चला था पुनः राह मै उसी
दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए …
—————————————-
दिल के अंधियारे दीपक जला के गयी
राह टेढ़ी चढ़ाई मै चढ़ता गया
दो दिलों की सी धड़कन मै सुनता रहा
कोई सपनों में रंगों को भरता रहा
रागिनी-मोहिनी-यामिनी-श्यामली
मेंहदी गोरी कलाई पे रचता रहा
छम -छमा-छम सुने पायलों की खनक
माथ बिंदिया के नग में था उलझा हुआ
इंद्र-धनुषी छटा में लिपट तू कहीं
उन सितारों की महफ़िल सजाती रही
लटपटाता रहा आह भरता रहा
फिर भी बढ़ता रहा रंग भरता रहा
तूने लव बनाये थे कुछ तरु वहीं
चीड-देवदार खामोश हारे सभी
तेरी जिद आगे हारे न लौटा सके
ना तुझे-ना वो खुशियाँ- न रंगीनियाँ
पलकों के शामियाने बस सजे रह गए
ना वो ‘दूल्हा’ सजा , ना वो ‘दुल्हन’ सजी
मंच अरमा , मचल के कतल हो गए
वर्फ से लदे गिरि पर्वत वहीं थे कफ़न से
दिखे ! चांदी की घाटियाँ कब्र सी बन गयीं
सुरमई सारे पल वे सुहाने सफ़र
सारे रहते हुए -बिन तुम्हारे सखी !
सारे धूमिल हुए -धूल में मिल गए
सिसकियाँ मुंह से निकली तो तरु झुक गए
फूल कुछ कुछ झरे ‘हार’ से बन गए
कौंधी बिजली तू आयी -समा नैन में
प्रेम -पाती ह्रदय में जो रख तू गयी
मै पढता रहा मै सम्हलता रहा डग भरता रहा
अश्रु छलके तेरी प्रीती में जो सनम
मै पीता रहा पी के जीता रहा
झील सी तेरी अंखियों में तरता रहा
तेरी यादों का पतवार ले हे प्रिये
तेरे नजदीक पल-पल मै आता रहा
दीप पल-पल जला-ये बुझाता रहा
आँधियों से लड़ा – मै जलाता रहा !
कल चला था पुनः राह मै उसी
दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए …
—————————————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’ ५
४.४५-५.४० मध्याह्न
१९.५.१२ कुल्लू यच पी
४.४५-५.४० मध्याह्न
१९.५.१२ कुल्लू यच पी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
कल चला था पुनः राह मै उसी
ReplyDeleteदिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए …
लाजबाब पंक्तियाँ ,,,,,बधाई भ्रमर जी,,,,
RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता
हार्दिक आभार आप का आदरणीय धीरेन्द्र जी ..रचना पर आप का प्रोत्साहन मिला मन खुश हुआ
ReplyDeleteभ्रमर ५
surendra shukla bhramar5 के द्वारा September 25, 2012
ReplyDeleteप्रिय संतोष जी जय श्री राधे बहुत दिन पश्चात आप के बोल सुन मन खुश हुआ ….प्रिय के आगे जीतने की तमन्ना भी क्या सब कुछ हार जाओ तो आनंद और आये वक्त ठहर जाता है …जिन्दगी के बड़े रंग हैं मिलन जुदाई ख़ुशी गम सब सामने आना चाहिए हैं न …
भ्रमर ५
shashibhushan1959 के द्वारा September 24, 2012
आदरणीय भ्रमर जी,
सादर !
“सिसकियाँ मुंह से निकली तो तरु झुक गए
फूल कुछ कुछ झरे ‘हार’ से बन गए
कौंधी बिजली तू आयी -समा नैन में
प्रेम -पाती ह्रदय में जो रख तू गयी
मै पढता रहा मै सम्हलता रहा डग भरता रहा”
मुझे बड़ी जलन होती है, कैसे आप इतना सुन्दर लिख
लेते हैं ! मेरी कल्पना में ये क्यों नहीं आता !
बहुत सुन्दर ! अद्भुत भाव !
सादर !
surendra shukla bhramar5 के द्वारा September 24, 2012
आदरणीय शशि भाई ..और हम आप के कायल हैं की हमे क्यों ये शब्द नहीं मिलते आप से ..भाव आते हैं शब्द कम पड़ जाते हैं आप पर माँ शारदे की बड़ी कृपा हैं थोडा मेरे लिए भी उन्हें मनाइए …
बहुत बहुत आभार आप का …जय श्री राधे
भ्रमर ५
annurag sharma(Administrator) के द्वारा September 24, 2012
बहुत ही अच्छी रचना की प्रस्तुति आभार
surendra shukla bhramar5 के द्वारा September 24, 2012
आदरणीय अनुराग जी आभार आप का रचना की प्रस्तुति अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी आप का अनुराग यूं ही बना रहे ..
जय श्री राधे
भ्रमर ५
surendr shukl bhramar5 के द्वारा
September 24, 2012
आदरणीया निशा जी अभिवादन …हाँ इन दिनों वहुत व्यस्तता रही आप सब की कमी बहुत खली …अब तो मंच का आनंद मिलता रहेगा ..रचना की ये पंक्तियाँ आप के मन को छू सकी सुन मन अभिभूत हुआ
आभार प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५
nishamittal के द्वारा September 24, 2012
बहुत दिन पश्चात आपकी रचना मंच पर मिली.बहुत सुन्दर
अश्रु छलके तेरी प्रीती में जो सनम
मै पीता रहा पी के जीता रहा
झील सी तेरी अंखियों में तरता रहा
तेरी यादों का पतवार ले हे प्रिये
surendr shukl bhramar5 के द्वारा September 24, 2012
……………
आदरणीया निशा जी अभिवादन …हाँ इन दिनों वहुत व्यस्तता रही आप सब की कमी बहुत खली …अब तो मंच का आनंद मिलता रहेगा ..रचना की ये पंक्तियाँ आप के मन को छू सकी सुन मन अभिभूत हुआ
आभार प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५
jlsingh के द्वारा September 24, 2012
रागिनी-मोहिनी-यामिनी-श्यामली…….इतने सारे नाम
ओ कृष्ण कन्हैया अब लड़कियां कम हैं
वह भी ४:४५ अपराह्न यानी दिन का सपना ….
आपके सपने सच हो पर किसी एक के साथ!
किसी एक को तो सुशोभित करें लगा के बिंदिया माथ.
नमस्कार और बधाई भ्रमर जी खूबसूरत ‘रचना’ (मैंने भी एक नाम जोड़ दिया) के लिए …
surendr shukl bhramar5 के द्वारा September 24, 2012
आदरणीय जवाहर भाई अच्छा हुआ ये नाम जो आप ने जोड़ा इस से तो बड़ा प्रगाढ़ रिश्ता है ‘रचना’ कविता तो बड़ी प्यारी हैं दुलारी हैं ..यही तो धरोहर हैं संगिनी हैं
हाँ आ जाती हैं ये कभी भी दिन क्या रात …आप तो सब जानते ही हैं ….लडकियां बढ़ें आइये ये कोशिश तो करते रहें ..
आभार
भ्रमर ५
shashibhushan1959 के द्वारा September 24, 2012
एक “मोहन” दिल्ली में हैं और एक मोहन हमारे “भ्रमर” जी !
surendra shukla bhramar5 के द्वारा September 24, 2012
शशि भाई अब उन महाशय के साथ और इस वर्तमान काल में तो मेरा नाम रहने ही दीजिये जोड़ने को ..हाँ दुआ कीजिए ये मोहिनी कला बनी रहे …जय श्री राधे
भ्रमर ५
श्रृंगार रस युक्त सुंदर रचना. बधाई भ्रमर जी.
ReplyDeletesurendr shukl bhramar5 के द्वारा September 27, 2012
आदरणीया विनीता जी जय श्री राधे …रचना श्रृंगार के साथ वियोग विरह से भरी आप को अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी आभार
भ्रमर ५
yogi sarswat के द्वारा September 26, 2012
ना वो ‘दूल्हा’ सजा , ना वो ‘दुल्हन’ सजी
मंच अरमा , मचल के कतल हो गए
वर्फ से लदे गिरि पर्वत वहीं थे कफ़न से
दिखे ! चांदी की घाटियाँ कब्र सी बन गयीं
सुरमई सारे पल वे सुहाने सफ़र
सारे रहते हुए -बिन तुम्हारे सखी !
सारे धूमिल हुए -धूल में मिल गए
सिसकियाँ मुंह से निकली तो तरु झुक गए
हमेशा की तरह सुन्दर रचना भ्रमर साब ! खूबसूरत पंक्तिया!
surendr shukl bhramar5 के द्वारा September 26, 2012
आदरणीय योगी जी जय श्री राधे इस विरह भरी रचना की ये पंक्तियाँ और उन खूबसूरत वादियों पहाड़ियों के बदले रंग आप के मन को प्रभावित कर सके लिखना सार्थक रहा ..
आभार प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५
manoranjanthakur के द्वारा September 26, 2012
रचना को आपने जिस चासनी में परोशा है ….
लाजवाव … अति मनमोहक …..
बधाई
surendr shukl bhramar5 के द्वारा September 26, 2012
धन्यवाद मनोरंजन भाई ये रसीली चासनी में सनी रचना की मिठास आप को अच्छी लगी लिखना सार्थक रहा जीवन में हर रंग दीखता है
आभार
भ्रमर ५
chaatak के द्वारा September 26, 2012
दीप पल-पल जला-ये बुझाता रहा
आँधियों से लड़ा – मै जलाता रहा !
खूबसूरत पंक्तिया!
surendr shukl bhramar5 के द्वारा September 26, 2012
प्रिय चातक जी जय श्री राधे ..उम्मीद है सब कुशल मंगल …
बड़े दिन बाद आप के दर्शन मिले मन खुश हुआ ये पंक्तियाँ आप को भायीं ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५
ANAND PRAVIN के द्वारा September 25, 2012
आदरणीय भ्रमर सर, सादर प्रणाम
आप और आपकी रचनाएँ………………….
जब शब्द – शब्द मिल जाते हैं, खन – खन सा शोर मचाते हैं,
मैं सोच – सोच बौराता हूँ, यह भाव कहाँ से आते हैं II
surendr shukl bhramar5 के द्वारा September 26, 2012
जब शब्द – शब्द मिल जाते हैं, खन – खन सा शोर मचाते हैं,
प्रिय आनंद जी बहुत सुन्दर राज की बात तो आप ने ऊपर लिख ही दिया माँ शारदे ही जाने क्या वो लिखना चाहती हैं हम सब से क्या उनकी मंशा होती है
आभार
जय श्री राधे
भ्रमर ५
shashibhushan1959 के द्वारा September 26, 2012
“”जब शब्द–शब्द मिल जाते हैं, खन–खन सा शोर मचाते हैं,
मैं सोच – सोच बौराता हूँ, यह भाव कहाँ से आते हैं ई”"”
क्या लाजवाब कमेन्ट है ! मैं सोचता था की सिर्फ मैं ही बौराता हूँ !
surendra shukla bhramar5 के द्वारा September 27, 2012
आदरणीय शशि भाई सचमुच लाजबाब कमेन्ट है होता है ऐसा ….
या खाए बौराय जग या पाए बौराय के बाद अब
या पढ़ के बौराय भी जोड़ दिया जाए ……ह हा
जय श्री राधे अपना स्नेह बरसाते रहें
भ्रमर ५
Santlal Karun के द्वारा September 25, 2012
आदरणीय भ्रमर जी, कविता में सयोंग की सारी उत्कंठा की समाप्ति अंकित है | शोक-विह्वल आर्द्र भावों से भरी–”इंद्र-धनुषी छटा में लिपट तू कहीं,उन सितारों की महफ़िल सजाती रही” इस भावगीत के लिए मेरी समवेदानात्मक भावांजलि !
surendr shukl bhramar5 के द्वारा September 25, 2012
आदरणीय संतलाल जी अभिनंदन आप का , जय श्री राधे ..बहुत सुन्दर लफ्जों में आपकी की गयी प्रतिक्रिया और उन भावों को समझ संवेदनात्मक भावांजलि के लिए हार्दिक आभार …यादें होती ही ऐसी हैं …जाने कहाँ गए वे पल …
आभार अपना स्नेह बनाये रखें
भ्रमर ५
PRADEEP KUSHWAHA के द्वारा September 25, 2012
सिसकियाँ मुंह से निकली तो तरु झुक गए
फूल कुछ कुछ झरे ‘हार’ से बन गए
कौंधी बिजली तू आयी -समा नैन में
प्रेम -पाती ह्रदय में जो रख तू गयी
मै पढता रहा मै सम्हलता रहा डग भरता रहा
आदरणीय भ्रमर जी, सादर अभिवादन
सुन्दर भाव सुन्दर सर्जन
बधाई,
surendr shukl bhramar5 के द्वारा September 25, 2012
आदरणीय कुशवाहा जी जय श्री राधे ये पंक्तियाँ आप के मन को अच्छी लगीं आप ने सराहा मन प्रफुल्लित हुआ
आभार
भ्रमर ५