जीवन को बोझ बनाने वाला
कभी कभी मन लगने लगता सचमुच बड़ा अकेला -
जीवन को बोझ बनाने वाला
जैसे परती भूमि पड़ी हो पत्थर गड़े दिखे बस ढेला
जीभ निकाले उधडा चमडा बैल पड़ा हो खड़ा हो ठेला
उबड़ खाबड़ बीहड़ में ज्यों सूख रहे पेड़ों का रेला
मन मोहक सुन्दर फूल हैं कितने गंध न कोई लेने वाला
कभी कभी मन लगने लगता सचमुच बड़ा अकेला -
जीवन को बोझ बनाने वाला !!
हरा भरा उपवन ना फुले सूख रहा दीखता ना माली
गदराया यौवन ज्यों सूखे जलता दिल मिलता ना साथी
दीपक जला प्रकाश बिखेरे तम घेरे अब जलती बाती
धान सूखता प्राण न घेरे बादल- पानी ना बरसाने वाला
कभी कभी मन लगने लगता सचमुच बड़ा अकेला -
जीवन को बोझ बनाने वाला !!
मूर्ति मगर मै खड़ा हुआ हूँ ठेस लगते जाते प्राणी
सोचूं सब सामर्थ्य भरा गिरा पेड़ ज्यों -फटी हो छाती
पर्वत जैसे मरुभूमि में जलता जाता आस लगाये टपके पानी
बोझ बढा ज्यों जनक हों व्याकुल कोई नहीं उठाने वाला
कभी कभी मन लगने लगता सचमुच बड़ा अकेला -
जीवन को बोझ बनाने वाला !!
नदी बह रही घाट न प्राणी बसे जहाँ ज्यों सूखा पानी
आँख खुली सब कुछ सुनता हूँ शून्य देखता मेले में कोई ना साथी
सुख साधन सब कल जैसा ही मन खोया क्यों आँखों पानी
मौत सी पहेली बूझो ना क्या होने वाला
कभी कभी मन लगने लगता सचमुच बड़ा अकेला –
जीवन को बोझ बनाने वाला !!
प्रिय मित्रों मंच से अनुपस्थित हूँ आज कल मार्च के बाद ठीक से दिल से पुनः बातें होंगी मन में आप सब की कमी बहुत खलती है बस पढ़ लेता हूँ आप सब को प्रतिक्रियाएं बहुत कम ही न के बराबर कृपया अपना स्नेह बनाये रखें और क्षमा ….क्षमा बडन को चाहिए छोटन को उत्पात है न ?
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२७.०३.2012
हजारीबाग मुन्द्रो
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
जी
ReplyDeleteसत्य का प्रगटीकरण
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteएकाकी मन का सुन्दर चित्रण किया है....
सादर
बहुत सुन्दर.. मन भावों का सुन्दर चित्रण..
ReplyDeleteसार्थक स्रजन किया है आपने!
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