जिंदगानी
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परिंदों की मानिंद हम भी तो
पंख फडफडाते उड़े जा रहे
यहाँ से वहां जहां अपना कोई नहीं
ठहर जाते हैं बसेरा -सवेरा
घोंसला बिन चुन
अंडे बच्चे माया मोह
चुगना चुगाना
"पर" आये बच्चे उड़ जाते हैं
हम अकेले तन्हाई बियावान
सुनसान -मन-घमासान
कुढ़ते-कुढ़ते यादों की पोटली के
उठते बैठते जागते सोते
विदा हो जाते हैं
मेले से
नम आँखें ले !
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और कभी सूखा, अंधड़,बाढ़
अकाल-बिन जल-बेहाल
लेकर अपना तन मन प्राण
उड़ जाते हैं अकेले हम
और छटपटाते व्याकुल
भूख से आकुल बच्चे
विदा हो जाते हैं
कुचक्र काल के झमेले से
बुलबुले से
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कितनी अबूझ पहेली है ये
जिंदगानी
शोकाकुल हो कभी
झर झर झरते हैं
आँखों से पानी
स्वार्थ का अतिरेक
सागर बन गया है
महासागर
आंसुओं का
लहरें मुंह बाए
लीलने को आतुर हैं
भयावह मंजर है
चरम पर
और किनारों का
न जाने क्यों
अब तक कहीं ना अता पता है !
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शुक्ल भ्रमर ५
१०.४५-११ मध्याह्न
२६.०१.२०१२
करतारपुर पंजाब
ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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रचना में बहुत सुन्दर शब्दचित्र अंकित किये हैं आपने!
ReplyDeleteरचना में बहुत सुन्दर शब्दचित्र अंकित किये हैं आपने!
ReplyDeleteतगड़ा विछोह
ReplyDeleteअरे भ्रमर कित्थे गिया, भ्रमर-गीत भरमाय ।
किंशुक किंवा चंचु-शुक, रहा व्यर्थ ही धाय ।
रहा व्यर्थ ही धाय, वहाँ न तेरा मेरा ।
बियाबान सुनसान, फ़क्त यादों का घेरा ।
रविकर पूछे यार, दसा करदा की उत्थे ।
पञ्च-नदी के पार, गिया रे भरमर कित्थे ।।
पञ्च-नदी के पार, गिया रे भरमर कित्थे ।।...
ReplyDeleteप्रिय रविकर जी पञ्च नदी के पार ही नहीं न जाने कौन कौन से घात का पानी पीना पड़ रहा है भारत भ्रमण आप सब से न मिल पाने का बहुत ही क्षोभ है मार्च के बाद मिलते रहेंगे ..तो अब पंजाबी बोलने लगे ...?? सुन्दर ...जय श्री राधे अपना स्नेह बनाये रखें
भ्रमर ५
आदरणीय शास्त्री जी अभिवादन ..रचना के शब्द चित्र आप ने मन से महसूस किये और ये आप को भाये सुन ख़ुशी हुयी ...जय श्री राधे अपना स्नेह बनाये रखें
ReplyDeleteभ्रमर ५
प्रस्तुती मस्त |
ReplyDeleteचर्चामंच है व्यस्त |
आप अभ्यस्त ||
आइये
शुक्रवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
सारे जहां का रंजो गम समेत कर ,अरे जब कुछ न मिल सका तो मेरा दिल बना दिया .
ReplyDeleteव्यथा -कथा जीवन की, कथा दर कथा ,कहती यथा ,.बेहतरीन रचना है आपकी .
कितनी अबूझ पहेली है ये ज़िंदगानी....
ReplyDeleteबेहतरीन रचना....