BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Tuesday, February 21, 2012

जीवित क्यों हूँ जब सब रोयें


बेवफा सनम को दिल में बसाए उसकी हर चाहत को पूरा करने जब प्रेमी निकला तो उसके आसमान छूते ख्वाब को पूरा करने की चाहत में जिन्दगी में न जाने क्या क्या उसे करना पड़ा झेलना पड़ा और उसकी जिन्दगी अनचाहे पथ पर चल निकली एक तरफ प्रेम और एक तरफ जिन्दगी का भटकाव कशमकश …उहापोह …ये जिन्दगी भी न जाने क्यों परीक्षा लेती है ..जिन्दगी एक गजब की पहेली है …कभी तो ये अलबेली है और कभी बिन पानी के तडपती एक मछली …….
जीवित क्यों हूँ जब सब रोयें

प्रिय दिल की दूरी ही कम करने
भूला -भटका लाश ये ढोये
बढ़ा जा रहा अंधकार में
पथ को खोये
पग लहू-लुहान तो तब ही थे
जब पत्थर तोड़े
भूखे नंगे छिप पड़े जो सोये
दबते अब -
हाथ भी अपने खून से धोये
लौटूं कैसे पास तुम्हारे
राह नहीं
चाह नहीं -
धन मन ले -क्यों नैन भिगोये ?
इज्जत सारी खुशियाँ भर
महलों में सोये
सानिध्य मेरा-दिल क्यों चाहे अब ?
सौ टुकड़ों में टूटा दिल
मै रखा संजोये
काँच सरीखा दिल में तेरे
चुभ न जाए
आग धधकती थी तब-अब भी
नीर नैन से हमने खोये
एक दूजे को देखे – पर थे
सुख सपनों में सोये
गला घोंट लूं -अपना ही क्या ?
पग थम जाता
जीवित क्यों हूँ जब सब रोयें ??
पथरीले राहों झरने को देखे -
बढ़ता जाता आस संजोये !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
जल पी बी २१.२.12




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

9 comments:

  1. दर्द बढ़ता जा रहा है |
    जिंदगी को खा रहा है |
    पर भ्रमर भी क्या करे--
    गा रहा, बस गा रहा है ||

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  2. दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
    http://dineshkidillagi.blogspot.in/2012/02/links.html

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  3. प्रिय रविकर जी अभिवादन --सच कहा आप ने दर्द बढ़ता जा रहा है लेकिन कोई नहीं बता रहा है
    आखिर इस दर्द की दवा क्या है गाने से थोडा दर्द हल्का तो होता ही है तो आइये यों ही गाते मुस्काते चलें
    भ्रमर५

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  4. प्रिय सुषमा जी अभिवादन --रचना में सुन्दर भाव दिखे सुन हर्ष हुआ काश इस जिन्दगी की परेशानियों को लोग और न बाधाएं सरल हों ...
    जय श्री राधे
    भ्रमर५

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  5. गहन अभिव्यक्ति..... जीवन में उहापोह भरे हैं.......

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  6. इतना दर्द देने वाले की आस फिर भी हम क्यूं करते रहते हैं ?

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  7. आदरणीया डॉ मोनिका जी रचना के गहन भाव आप के मन को छू सके ख़ुशी हुयी सुन के
    आभार आप का
    भ्रमर ५

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  8. आदरणीया आशा जी -जय श्री राधे रचना के गहन भाव आप के मन को छू सके ख़ुशी हुयी सुन के -यही तो समझ नहीं आता प्रेम में दर्द और बेवफाई भी कैसे सहते जाते है सुन्दर कथन आप के --जिन्दगी एक पहेली ही तो है
    आभार आप का
    भ्रमर ५

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  9. बहुत बढ़िया भाव पुर्ण सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना के लिए बधाई .
    सुरेन्द्र जी,बहुत दिनों से मेरे पोस्ट पर नही आरहे
    ऐसी भी क्या नारजगी,...आइये स्वागत है....

    NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५