मेरा भारत महान
——————-
ऊपर से हरा भरा दीखता
लहलहाता -झूमता ये पेड़
पोपला है
अन्दर से खोखला है
इस के अन्दर रहते बड़े-बच्चे
कभी कभी जब ये
भाँप जाते हैं
आंक जाते हैं भविष्य
आंधी तूफ़ान में
स्थिर रहना
ढहने से बच जाना
तो उड़ जाते हैं
जो उड़ पाते हैं
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ऊपर से हरा भरा दीखता
लहलहाता -झूमता ये पेड़
पोपला है
अन्दर से खोखला है
इस के अन्दर रहते बड़े-बच्चे
कभी कभी जब ये
भाँप जाते हैं
आंक जाते हैं भविष्य
आंधी तूफ़ान में
स्थिर रहना
ढहने से बच जाना
तो उड़ जाते हैं
जो उड़ पाते हैं
कभी -कभी बच्चों को
भगवान् के रहमो करम पर छोड़
उधर प्रवासियों के पैरों में
डाल दी जाती हैं
जंजीर मोटी-मोटी
तमाशा बना दिया जाता है उन्हें
सीमा पार कभी स्वतः
कभी कुछ ले दे कबूतर बाजी से
जबरन धकेल दिया जाता है
इधर कुछ को जिन्हें दिन में भी
अब भी नहीं दीखता -सूझता
अंधे हो -खोद -खोद और खोखला बना रहे
भगवान् के रहमो करम पर छोड़
उधर प्रवासियों के पैरों में
डाल दी जाती हैं
जंजीर मोटी-मोटी
तमाशा बना दिया जाता है उन्हें
सीमा पार कभी स्वतः
कभी कुछ ले दे कबूतर बाजी से
जबरन धकेल दिया जाता है
इधर कुछ को जिन्हें दिन में भी
अब भी नहीं दीखता -सूझता
अंधे हो -खोद -खोद और खोखला बना रहे
कुछ इसी में रह भी रहे
खा रहे निठल्ले -बैठे
कितने बेईमान
दांतों तले अंगुली दबा
लोग कहते हैं दुनिया के
हे ! भगवान धन्य है तू
तू है महान !
जो अब भी चलाता जा रहा है
धड़ल्ले से ये हिन्दुस्तान !
और हम साल भर रोते -रोते
गाते आ रहे गर्व से
१५ अगस्त और २६ जनवरी को
मेरा भारत महान !!
मेरा भारत महान !!
—————–
शुक्ल भ्रमर ५
६-६.२२ पूर्वाह्न
यच पी
११.१२.२०११
खा रहे निठल्ले -बैठे
कितने बेईमान
दांतों तले अंगुली दबा
लोग कहते हैं दुनिया के
हे ! भगवान धन्य है तू
तू है महान !
जो अब भी चलाता जा रहा है
धड़ल्ले से ये हिन्दुस्तान !
और हम साल भर रोते -रोते
गाते आ रहे गर्व से
१५ अगस्त और २६ जनवरी को
मेरा भारत महान !!
मेरा भारत महान !!
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शुक्ल भ्रमर ५
६-६.२२ पूर्वाह्न
यच पी
११.१२.२०११
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
बहुत सही और सटीक लिखा है आपने ..
ReplyDeleteअच्छी कविता लिखी है भावपूर्ण
ReplyDeleteजोश पूर्ण भी ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..
ReplyDeleteआदरणीय कुश्वंश जी अभिवादन ..कविता भावपूर्ण लगी और आप के मन को छू सकी सुन हर्ष हुआ ..
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
पल्लवी जी अभिवादन ..कविता जोशपूर्ण लगी और आप ने सराहा लिखना सार्थक रहा
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
आदरणीय कैलाश शर्मा जी अभिवादन ..कविता की प्रस्तुति अच्छी और सटीक लगी आप ने सराहा लिखना सार्थक रहा
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
बहुत सार्थक प्रस्तुति, सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
प्रिय धीरेन्द्र जी रचना की प्रस्तुति आप को भाई सुन ख़ुशी हुयी
ReplyDeleteआभार
भ्रमर५
सुदंर पोस्ट।
ReplyDeleteशुक्ल जी आपकी कविता में सच्चाई है और अच्छे तरीके से व्यक्त हुई है लेकिन मातृभूमि तो महान ही होती है । जो कुछ गलत है वह लोगों के कारण ही है । कथा-कहानी पर आने का शुक्रिया ।
ReplyDeleteडॉ मीनक्षी स्वामी जी अभिवादन और अभिनन्दन आप का यहाँ ..रचना आप के मन को भायी सुन ख़ुशी हुयी
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
आदरणीया गिरिजा जी अभिवादन बहुत सुन्दर कहा आप ने अपना देश और मातृभूमि सब से बढ़ कर है लोग अगर सुधर जाएँ तो क्यों हमें ये सब सुनना सहना पड़े ..
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
आदरणीया शांति जी अभिवादन रचना आप के मन को छू सकी बेहतरीन लगी सुन हर्ष हुआ
ReplyDeleteभ्रमर ५