(फोटो साभार गूगल/नेट से )
नारी
————-
श्वेत विन्दु -हिम अंचल उपजी
पुरुष-जटा -तृण-पत्थर उलझी
है गंगा सी धारा
शीतल -पावन -करती जाती
भूख मिटाती
प्यास बुझाती
सुख -नैनों को देती जाती
सदा हंसाती
कभी रुलाती
वेद -ग्रन्थ सब -तारा !!
ममता- वात्सल्य की है ये देवी
काली का ये रूप धरे तो
बनती -वलि वेदी
करुणा -व्यथा का भान है रखती
दिल उपजे दुःख दूना
ज्वालामुखी है -कभी भड़कती
होती आग बबूला
सच्ची है ये मान की प्यासी
प्यार मिले तो आत्म -समर्पण
न्योछावर ये होती
करती है श्रृंगार धरा का
प्रतिपल रचती रहती
टूटे -धागे जोड़-जोड़ कर
नभ -ब्रह्माण्ड -बनाती
————————-
रेगिस्तान में जल की बूँदें
जेठ -दुपहरी में है छाया
डूब रहे को है ये तिनका
प्रभु ना जानें इसकी “माया”
———————————
जग -जननी है -देवी है ये
पूजनीय है -वन्दनीय है
लक्ष्मी है ये- काली है ये
माँ-शारद है वेद -ज्ञान है
——————————-
भगिनी है ये -यही है दुहिता
नारी-पत्नी जग-कल्याणी
हिरनी सी उच्छ्रिन्खल भी है
दोस्त यही दुश्मन –सब- कुछ है
रौद्र रूप धारण करती ये
रात है काली -नागिन है ये
महानदी है -लील सके ये
सुन्दर जग को
आओ इस को एक दिशा दें
जग कल्याण इधर होता है
इसे दिखा दें
कहें “भ्रमर’ आ फिर सो जाएँ
चैन -शान्ति से चिर कालों तक
बिना व्यथा के
सदा-सदा ब्रह्माण्ड चलाती आई है ये
बिन बाधा के
प्यारी है
पावन -नारी -है ये -शुचिता !!
—————————————-
भ्रमर ५
८-८.३० पूर्वाह्न
१०.१२.२०११ यच पी
पुरुष-जटा -तृण-पत्थर उलझी
है गंगा सी धारा
शीतल -पावन -करती जाती
भूख मिटाती
प्यास बुझाती
सुख -नैनों को देती जाती
सदा हंसाती
कभी रुलाती
वेद -ग्रन्थ सब -तारा !!
ममता- वात्सल्य की है ये देवी
काली का ये रूप धरे तो
बनती -वलि वेदी
करुणा -व्यथा का भान है रखती
दिल उपजे दुःख दूना
ज्वालामुखी है -कभी भड़कती
होती आग बबूला
सच्ची है ये मान की प्यासी
प्यार मिले तो आत्म -समर्पण
न्योछावर ये होती
करती है श्रृंगार धरा का
प्रतिपल रचती रहती
टूटे -धागे जोड़-जोड़ कर
नभ -ब्रह्माण्ड -बनाती
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रेगिस्तान में जल की बूँदें
जेठ -दुपहरी में है छाया
डूब रहे को है ये तिनका
प्रभु ना जानें इसकी “माया”
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जग -जननी है -देवी है ये
पूजनीय है -वन्दनीय है
लक्ष्मी है ये- काली है ये
माँ-शारद है वेद -ज्ञान है
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भगिनी है ये -यही है दुहिता
नारी-पत्नी जग-कल्याणी
हिरनी सी उच्छ्रिन्खल भी है
दोस्त यही दुश्मन –सब- कुछ है
रौद्र रूप धारण करती ये
रात है काली -नागिन है ये
महानदी है -लील सके ये
सुन्दर जग को
आओ इस को एक दिशा दें
जग कल्याण इधर होता है
इसे दिखा दें
कहें “भ्रमर’ आ फिर सो जाएँ
चैन -शान्ति से चिर कालों तक
बिना व्यथा के
सदा-सदा ब्रह्माण्ड चलाती आई है ये
बिन बाधा के
प्यारी है
पावन -नारी -है ये -शुचिता !!
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भ्रमर ५
८-८.३० पूर्वाह्न
१०.१२.२०११ यच पी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अध्यात्म-विज्ञान-कला-संस्कृति औत मानव की कोमलतम भावनाओं का अद्भुत समन्वय. जिसे जो पसंद हो, अपनी पसंद ढूंढ ले और तृप्त हो ले. सार गर्भित अनूठी रचना, इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय, कम है. आभार इस उत्कृष्ट रचना के लिए.
ReplyDeleteआदरणीय डॉ जे पी तिवारी जी हार्दिक अभिवादन और अभिनन्दन आप का ...आप की ये प्यारी प्रतिक्रिया नारी के सम्मान को बहुत बढ़ा गयी काश सभी आप जैसे ही नारी के बिभिन्न रूपों का आदर करें उसे प्रेम करें और मान दें तो ये समाज सुधर जाए
ReplyDeleteजय श्री राधे
भ्रमर ५