मै और मेरा दर्पण-
हमजोली हैं
चोली-दामन का साथ है
जन्मों के साथी हैं
गठ-बंधन है इससे मेरा
अब तक साथ निभाता
साथ-साथ चलता
इतनी दूर ले आया है
जो मै देख नहीं सकता
इसने दिखाया है
मेरा चेहरा -मेरी पीठ -मेरा भूत
बन के देवदूत
निश्छल -निष्कपट
आत्मा है इसकी
सच कह जाता है
मुझ सा
भले ही पत्थर उठे
देख घबराता है
टूटा नहीं -अब तक
प्रार्थना है हे प्रभू
इस पर दाग न लगे
न ये टूटे -फूटे
ना ये बदले
नहीं तो आज कल तो
दर्पण भी न जाने क्या क्या
चटपटा -रोचक
त्रिआयामी-खौफनाक
मंजर दिखाते हैं
पैसा कमाते है -उनके लिए
खुद तो शूली पे टंग
दर्शक को लुभाते हैं -
इतना झूठ -फरेब देख -चैन से
न जाने कैसे ये
खाते हैं -सोते हैं
दर्पण कहलाते हैं ???
जब मै अँधेरे में
या अँधेरा मुझमे समाता है
न जाने क्यों ये दर्पण
साथ छोड़ जाता है ??
कुरेदता है बार-बार
नींदें हराम किये
मुझको जगाता है
बेचैन कर मेरी आत्मा को
रौशनी में
खींच ही लाता है !!!
——————
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर” ५
८.३० पूर्वाह्न जल पी बी
१८.१०.2011
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
हमजोली हैं
चोली-दामन का साथ है
जन्मों के साथी हैं
गठ-बंधन है इससे मेरा
अब तक साथ निभाता
साथ-साथ चलता
इतनी दूर ले आया है
जो मै देख नहीं सकता
इसने दिखाया है
मेरा चेहरा -मेरी पीठ -मेरा भूत
बन के देवदूत
निश्छल -निष्कपट
आत्मा है इसकी
सच कह जाता है
मुझ सा
भले ही पत्थर उठे
देख घबराता है
टूटा नहीं -अब तक
प्रार्थना है हे प्रभू
इस पर दाग न लगे
न ये टूटे -फूटे
ना ये बदले
नहीं तो आज कल तो
दर्पण भी न जाने क्या क्या
चटपटा -रोचक
त्रिआयामी-खौफनाक
मंजर दिखाते हैं
पैसा कमाते है -उनके लिए
खुद तो शूली पे टंग
दर्शक को लुभाते हैं -
इतना झूठ -फरेब देख -चैन से
न जाने कैसे ये
खाते हैं -सोते हैं
दर्पण कहलाते हैं ???
जब मै अँधेरे में
या अँधेरा मुझमे समाता है
न जाने क्यों ये दर्पण
साथ छोड़ जाता है ??
कुरेदता है बार-बार
नींदें हराम किये
मुझको जगाता है
बेचैन कर मेरी आत्मा को
रौशनी में
खींच ही लाता है !!!
——————
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर” ५
८.३० पूर्वाह्न जल पी बी
१८.१०.2011
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
बहुत सुन्दर लिखा है आपने, बधाई हो !!
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति बधाई
ReplyDeleteसमय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_18.html
बहुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteआज आपकी रचना के बारे में सिर्फ़ एक शब्द "गजब" और कुछ नहीं।
ReplyDeleteअरे कमाल का लिखा है आज तो……………मेरे पास तो शब्द कम पड गये है तारीफ़ के लिए
ReplyDeleteप्रभावी रचना ... बहुत ही कमाल का लिखा है आपने ... मज़ा आ गया ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
चौरसिया जी आभार प्रोत्साहन हेतु आप के ब्लॉग पर गया सुन्दर जानकारी ..लेकिन कुछ लिख नहीं पाया फिर आऊँगा ..जय माता दी
ReplyDeleteभ्रमर ५
पल्लवी जी आभार प्रोत्साहन हेतु आप के ब्लॉग पर गया सुन्दर रचना प्रेम की अभिव्यक्ति और मायने
ReplyDeleteधन्यवाद
भ्रमर
माहेश्वरी कानेरी जी अभिवादन और आभार प्रोत्साहन हेतु अपना स्नेह कायम रखें
ReplyDeleteधन्यवाद
भ्रमर
प्रिय संदीप जी अभिवादन और आभार प्रोत्साहन हेतु आप का गजब कहना सर आँखों पर ..हर का दून भी घूम आये हम - अपना स्नेह कायम रखें
ReplyDeleteधन्यवाद
भ्रमर
प्रिय संजय भाई जी अभिवादन और आभार प्रोत्साहन हेतु देर से आये लेकिन ननिहाल की यादें और झरोखा संग्रहालय का ले आये ये कहाँ कम है अब - अपना स्नेह कायम रखें
ReplyDeleteधन्यवाद
भ्रमर
प्रिय दिगंबर जी प्रोत्साहन हेतु आभार आज कल कहीं व्यस्त हैं क्या कम हाजिरी रही ...नयी रचनाएं ?
ReplyDeleteधन्यवाद
भ्रमर
प्रिय रविकर जी आभार प्रोत्साहन हेतु ..अच्छा छक्का मारा आपने डंकी को शेर ?
ReplyDeleteधन्यवाद
भ्रमर