जब मेरे विचार
उनसे मेल नहीं खाते
उहापोह की स्थिति
मन बोझिल
उन्होंने तो कसम खा रखी है
समझौता ना करने की
जिद है एक तानाशाह सी
उनके अन्दर
न बदलने की
अहम् ब्रह्मास्मि की आदत
बात बात पर रूठ जाने की
अपनी ही कहने
और प्रभावी बनाने की
सच तो सच है
कहाँ दबता है ??
हमें कुरेदता है
तुम सही हो तो डर कैसा ?
आज नहीं तो कल जानेंगे
मानेंगे वे भी कभी तो
मृत्युशैय्या तक ...
सोच सोच मै पगलाता हूँ
वाणी में प्रवाह जोश
एक उबाल आता है
सब कुछ बदल देने को
आसमान सर पर उठा लेने को
मन करता है
पर तभी मेरा उनसे भी अजीज
प्यारा साथी साथ निभाता है
"मौन" -एकाकीपन
दीवारें -छत -गूढ़ दुनिया
गहराई में डूब जाता हूँ
बड़ा सुकूँ पाता हूँ
अगणित विचारों से
जाग जाग रातों में
न जाने क्या क्या बतियाता हूँ
इधर से तीर चलता हूँ
खुद ही उसे काट जाता हूँ
कुछ दिन में फिर गहराई से
उथले पानी बाह्य दुनिया दिखावा की
इस जगती में आता हूँ
ढाल तलवार छोड़
उन्हें फिर से गले लगा लेता हूँ
वही सोच ..
सच कभी दबता नहीं
वे जानेंगे मानेंगे
आज नहीं तो कल
मृत्युशैय्या तक ......
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
४.२५ पूर्वाह्न २०.१०.२०११
जल पी बी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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