मेरी एक अलग जाति है
छुआ छूत है मुझसे
अधिकतर लोग किनारा किये रहते हैं
३६ का आंकड़ा है मेरा उनका
नाम के लिए मै
एक पदाधिकारी हूँ एक कार्यालय का
लेकिन चपरासी बाबू सब प्यारे है
दिल के करीब हैं
कंधे से कन्धा मिलाये
ठठाते हैं हँसते बतियाते हैं
पुडिया से दारु ..कबाब
अँधेरी गली के सब राजदार हैं
सुख में सब साथ साथ हैं
सब प्रिय हैं साथी हैं
जो भी मेरे विरोधी हैं
उनके …अरे समझे नहीं
मेरे प्रबंधक के ….
हमसाये हैं ..हमराही हैं
मेरे मुह से निकली बातें
चुभती हैं
उनके कानों कान जा पहुँचती हैं
चमचों की खनखनाहट
जोर की है
जहां मेरा रिजेक्शन का मुहर लगने वाला हो
फाईल मेरे पास आने से पहले ही
वहां तुरंत अप्रूवल हो जाता है
और मै मुह देखता
दो रोटी की आस में
दो किताबों की चाह में
जो मेरे प्यारे बच्चों तक जाती है
जो दो रूपये कल उनका भविष्य….
ईमानदारी के ये दो रूपये
तनख्वाह के कुछ गिने चुने ….
मुहर ठोंक देता हूँ
कडवे घूँट पी कर
उनकी शाख ऊपर तक है
उनका बाप ही नहीं
कई बाप …ऊपर बैठे हैं जो
मेरे पंख नोच ..जटायु बना देने के लिए
मैंने रामायण पढ़ा हैं
समझौता कर …अब जी लेता हूं
अधमरा होने से अच्छा
कुछ दिन जी कर
कुछ तीसरी दुनिया के लिए
आँख बन जाना अच्छा है
शायद कुछ रौशनी आये
मेरी नजर उन्हें मिल जाए
बस जी रहा हूँ ….
अकेले पड़ा सोचता हूँ
नींद हराम करता हूँ
जोश भरता हूँ
होश लाता हूँ
चल पड़ता हूँ …..
गाँधी जी का एक भजन गाते हुए
जोदी तोर डाक सुने केऊ ना आसे
तोबे एकला चोलो रे …..
शुक्ल भ्रमर ५
२.१०.२०११
यच पी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
छुआ छूत है मुझसे
अधिकतर लोग किनारा किये रहते हैं
३६ का आंकड़ा है मेरा उनका
नाम के लिए मै
एक पदाधिकारी हूँ एक कार्यालय का
लेकिन चपरासी बाबू सब प्यारे है
दिल के करीब हैं
कंधे से कन्धा मिलाये
ठठाते हैं हँसते बतियाते हैं
पुडिया से दारु ..कबाब
अँधेरी गली के सब राजदार हैं
सुख में सब साथ साथ हैं
सब प्रिय हैं साथी हैं
जो भी मेरे विरोधी हैं
उनके …अरे समझे नहीं
मेरे प्रबंधक के ….
हमसाये हैं ..हमराही हैं
मेरे मुह से निकली बातें
चुभती हैं
उनके कानों कान जा पहुँचती हैं
चमचों की खनखनाहट
जोर की है
जहां मेरा रिजेक्शन का मुहर लगने वाला हो
फाईल मेरे पास आने से पहले ही
वहां तुरंत अप्रूवल हो जाता है
और मै मुह देखता
दो रोटी की आस में
दो किताबों की चाह में
जो मेरे प्यारे बच्चों तक जाती है
जो दो रूपये कल उनका भविष्य….
ईमानदारी के ये दो रूपये
तनख्वाह के कुछ गिने चुने ….
मुहर ठोंक देता हूँ
कडवे घूँट पी कर
उनकी शाख ऊपर तक है
उनका बाप ही नहीं
कई बाप …ऊपर बैठे हैं जो
मेरे पंख नोच ..जटायु बना देने के लिए
मैंने रामायण पढ़ा हैं
समझौता कर …अब जी लेता हूं
अधमरा होने से अच्छा
कुछ दिन जी कर
कुछ तीसरी दुनिया के लिए
आँख बन जाना अच्छा है
शायद कुछ रौशनी आये
मेरी नजर उन्हें मिल जाए
बस जी रहा हूँ ….
अकेले पड़ा सोचता हूँ
नींद हराम करता हूँ
जोश भरता हूँ
होश लाता हूँ
चल पड़ता हूँ …..
गाँधी जी का एक भजन गाते हुए
जोदी तोर डाक सुने केऊ ना आसे
तोबे एकला चोलो रे …..
शुक्ल भ्रमर ५
२.१०.२०११
यच पी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अथ आमंत्रण आपको, आकर दें आशीष |
ReplyDeleteअपनी प्रस्तुति पाइए, साथ और भी बीस ||
सोमवार
चर्चा-मंच 656
http://charchamanch.blogspot.com/
खुबसूरत रचना ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेरक तथा सार्थक रचना , आभार
ReplyDeleteसुन्दर प्रे्रक और सार्थक रचना ..
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति कुछ व्यंग कुछ सच्चाई. बधाई सुंदर रचना के लिए.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ...
ReplyDeleteवाह वाह...
ReplyDeleteबहुत साधुवाद इस बेहतरीन रचना के लिए...
सादर...
behtarin rachna,,,apne blog per amantran aaur badhayee ke sath
ReplyDeleteप्रिय रविकर जी अवश्य आप की सराहनीय मेहनत में शामिल होने सोमवार को आयेंगे चर्चा मंच पर
ReplyDeleteधन्यवाद
भ्रमर ५
प्रिय वी पी सिंह राजपूत जी अभिवादन और अभिनन्दन आप का यहाँ पर -प्रोत्साहन के लिए
ReplyDeleteधन्यवाद
भ्रमर ५
प्रिय यस यन शुक्ल जी अभिवादन और अभिनन्दन आप का यहाँ पर -अपना स्नेह यों ही बनाये रखें -प्रोत्साहन के लिए
ReplyDeleteधन्यवाद और आभार
भ्रमर ५
आदरणीय महेश्वरी जी अभिवादन रचना प्रेरक लगी लिखना साकार रहा -अपना स्नेह यों ही बनाये रखें -प्रोत्साहन के लिए
ReplyDeleteधन्यवाद और आभार
भ्रमर ५
आदरणीया रचना दीक्षित जी अभिवादन रचना की प्रस्तुति अच्छी लगी व्यंग्य और सच्चाई का पुट था - लिखना साकार रहा -अपना स्नेह यों ही बनाये रखें -प्रोत्साहन के लिए
ReplyDeleteधन्यवाद और आभार
भ्रमर ५
आदरणीय संजय मिश्र हबीब जी अभिवादन और अभिनन्दन आप का पहली मुलाकात ..रचना पर आप से वाह वाही मिली मन खुश हो गया - लिखना साकार रहा -अपना स्नेह यों ही बनाये रखें -प्रोत्साहन के लिए
ReplyDeleteधन्यवाद और आभार
भ्रमर ५
डॉ आशुतोष मिश्र "आशु" जी अभिवादन और अभिनन्दन आप का पहली मुलाकात ..रचना को आप ने सराहा ये आप के दिल को छू सकी मन खुश हो गया - लिखना साकार रहा -अपना स्नेह यों ही बनाये रखें -प्रोत्साहन के लिए
ReplyDeleteधन्यवाद और आभार
भ्रमर ५