BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Sunday, July 8, 2018

कल कुछ मीठे सपने आये


कल कुछ मीठे सपने आये
मेरा हुआ प्रमोशन
गदगद उछला खिला खिला था
इतना बढ़ा इमोशन
कलयुग सतयुग जैसा था कल
भ्रष्ट मेरे जो अधिकारी कल
'हार ' लिए थे मीठे उनके बोल
'ईमा' फल दायी होती है
उछले , पीट रहे थे ढोल
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आसमान नीचे उतरा था
नीम करेला हुआ था मीठा
कुत्ते सीधी पूंछ किये थे
भीख मांगता रावण जीता
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अपने 'पास ' बिठाये मुझको
नफरत घृणा नहीं आँखों में
चमचों जैसे उनके बोल
मेरा मुंह भी बंद पड़ा था
उनको डर था खुले ना पोल
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'लॉबी' उनकी ‘टीम’ बनी थी
आज हमारे 'साथ' खड़ी थी
जैसे 'मधु 'जुटाने खातिर
डंक ‘व्यंग्य’ सब भूल गयी थी
अच्छाई ज्यों जीत गयी थी
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तभी एक कोने में सहसा
खिला खिला सा चेहरा देखा
मुख मंडल पर आभा वाला
'नव आगंतुक ' बड़ा निराला
कौवों में ज्यों हंस विराजा
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यही नया है ना खाता ना खाने देता
अनुशाशन हर दिन दिखलाता
नयी नीति पैगाम रोज नित
सत्कर्मी को गले लगाता
सुनता जी भर और सिखाता
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फुसफुस आवाजें कुछ उभरीं
दिवा स्वप्न 'ना ' तब में जागा
अपने अंतर फिर फिर झाँका
अच्छा कर्म सदा देता है
मन मेरा फिर मेरा माना
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सुरेंद्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर ५ '
2.55-3.४५
पॉवरग्रिड
लखनऊ
६ अप्रैल २०१८










दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

15 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 10/07/2018
    को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  2. आदरणीय भ्रमर जी -- आजकल के हालात और मानसिकता पर करारे व्यंग !!!!!!!!सादर शुभकामनायें |

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  3. कुलदीप जी रचना आप के मन को छू सकी और आपने इसे लिंक कर सम्मान दिया ख़ुशी हुयी आभार …………. भ्रमर5

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  4. आदरणीया रेनू जी भ्रष्ट अधिकारियों और ईमानदार कर्मी के बीच कशमकश भरी इस रचना के व्यंग्य को आप ने समझा ख़ुशी हुयी आभार ………...भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५