क्यों मरते हो हे ! आतंकी
कीट पतंगों के मानिंद
हत्यारे तुम-हमे बुलाते
जागें प्रहरी नहीं है नींद
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उधर काटता केक वो बैठा
ड्राई फ्रूट चबाता है
घोर निशा में सर्द बर्फ हिम
कब्र तेरी बनवाता है
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आतातायी ब्रेनवाश कर
नित नए जिहाद सिखाता है
'मूरख' ना बन तू भी मानव
कभी सोच रे ! क्या तू दानव ?
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मार-काट नित खून बहाना
कुत्तों सा निज खून चूसना -
खुश होना फिर- कौन मूर्ख सिखलाता है
नाली के कीड़े सा जीवन क्या 'आजादी' गाता है
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कितनी आशाएं सपने लेकर
माँ ने तेरी तुझको पाला
क्रूर , जेहादी भक्षक बनकर
बिलखाया ले छीन निवाला
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'स्वर्ग' सरीखा अपना भारत
'देव' तुल्य जन-गण-मन बसता
प्रेम पगी धरती 'फिर' स्वागत
'मानव' बन तू 'फिर' आ सकता
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चीख रही माँ बहने तेरी
'आ लौट ' गुहार लगाती हैं
'काल' यहां नित अब मंडराता
'कब्र खोद ' थक जाती हैं
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एक बार फिर फिरकर आ जा
माँ को अपने गले लगा ले
हिंसा बंदूके बम छोड़े
‘प्रेम की गंगा’ यहां समा जा
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माँ तेरी नित-नित घुट मरती
रिश्ते नाते तार -तार हो लिए कफ़न सब रोते हैं
घायल की गति तू क्या जाने
टीस-दर्द का 'विष' प्याला भर पीते हैं
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मै माँ तेरी वो उसकी माँ ऐसे-वैसे
सब 'अपने' - भाई के रिश्ते
गोलीबारी -पत्थरबाजी मरते अपने
लिए कफ़न ताबूत खड़े वे बने फ़रिश्ते
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कुछ मासूमों की आँखों में
ख्वाब तैरते कैसा भाई -बाप कहाँ ?
'लव' जेहाद फंस कुछ बालाएं
जूझ रहीं ना घर दिखता ना घाट यहां
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बैठ कभी जंगल हिम में ही
तनहाई जब तू पाए
सोच ज़रा पल नयी दिशा दे
मार-काट तज घर आये
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गलियां चौबारे बचपन कुछ
मित्र मण्डली याद करो
क्या करने जग आया प्यारे ?
गोदी माँ ‘कुछ’ याद करो
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माँ की आँखों में जादू है
बड़ी शक्ति है मन्नत दुआ की खान यही
भटक गया बेकाबू तो क्या
अब भी तुझे बचा लेगी
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"मौलिक व अप्रकाशित"
सुरेंद्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५
६-७.३० पूर्वाह्न
जम्मू और कश्मीर
२५ नवम्बर २०१७
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
दिनांक 28/11/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
माँ की आँखों में जादू है
ReplyDeleteबड़ी शक्ति है मन्नत दुआ की खान यही
भटक गया बेकाबू तो क्या
अब भी तुझे बचा लेगी
सुंदर प्रस्तुति।
कहाँ अक्ल आती इन हिंसक पशुवृत्ति वालों को
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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