गाल गुलाब छिटकती
लाली
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जुल्फ झटक मौका
कुछ देती
अँखियाँ भरे निहार
सकूँ
कारी बदरी फिर ढंक
लेती
छुप-छुप जी भर
प्यार करूँ
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इन्द्रधनुष सतरंगी
सज-धज
त्रिभुवन मोहे अजब
मोहिनी
कनक समान सजे हर
रज कण
किरण गात तव अजब
फूटती
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गहरी झील नैन
भव-सागर
उतराये डूबे जन
मानस
ढाई आखर प्रेम की
गागर
अमृत सम पीता बस
चातक
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गाल गुलाब छिटकती
लाली
होंठ अप्सरा इंद्र
की प्याली
थिरक रिझा मतवारी
मोरनी
लूट चली दिल अरी !
चोरनी
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कंठ कभी कब होंठ
सूखते
मति-मारी मद-मस्त
हुआ
डग मग पग जब दिखे
दूर से
पास खिंचा 'घट'
तृप्त हुआ
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कंचन कामिनी कटि
हिरणी सी
नागिन ह्रदय पे
लोट गयी
चकाचौंध अपलक
बिजली सी
मंथन दिल ,अमृत
-विष कुछ घोल गयी
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सुरेन्द्र कुमार
शुक्ल भ्रमर ५
६-६.५७ मध्याह्न
कुल्लू हिमाचल
प्रदेश भारत
७-मई -२०१५
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
"घट तृप्त हुआ" लाजवाब
ReplyDeleteप्रिय राकेश भाई .. इस प्रेम और प्रणय पगी रचना का रस लिया आप ने ख़ुशी हुयी सराहना के लिए
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
आदरणीय शास्त्री जी प्रेम और श्रृंगार भरी ये रचना आप के मन को छू सकी और आप ने इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया ख़ुशी हुयी
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
आदरणीय शास्त्री जी प्रेम और श्रृंगार भरी ये रचना आप के मन को छू सकी और आप ने इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया ख़ुशी हुयी
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
Nice Poem....
ReplyDeleteXiaomi Mi 10 Extreme Review
nice poem so wonderful
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