जो मुस्का दो खिल जाये मन
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खिला खिला सा चेहरा तेरा
जैसे लाल गुलाब
मादक गंध जकड़ मन लेती
जन्नत है आफताब
बल खाती कटि सांप लोटता
हिय! सागर-उन्माद
डूबूं अगर तो पाऊँ मोती
खतरे हैं बेहिसाब
नैन कंटीले भंवर बड़ी है
गहरी झील अथाह
कौन पार पाया मायावी
फंसे मोह के पाश
जुल्फ घनेरे खो जाता मै
बदहवाश वियावान
थाम लो दामन मुझे बचा लो
होके जरा मेहरबान
नैन मिले तो चमके बिजली
बुत आ जाए प्राण
जो मुस्का दो खिल जाए मन
मरू में आये जान
गुल-गुलशन हरियाली आये
चमन में आये बहार
प्रेम में शक्ति अति प्रियतम हे!
जाने सारा जहान
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२०.०२.२०१४
४.३०-५ मध्याह्न
करतारपुर जालंधर पंजाब
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
प्रभावी अंदाज़ है आपकी लेखनी में
ReplyDeleteसंजय भाई आभार प्रोत्साहन हेतु आप सब का स्नेह और कृपा बनी रहे ...
ReplyDeleteजय श्री राधे
भ्रमर ५
वाह क्या बात है, भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteप्रिय हिमकर श्याम जी रचना आप को पसंद आयी लिखना सार्थक रहा
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५