BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Wednesday, February 5, 2014

माँ आँचल सुख

 
माँ आँचल सुख
( photo from google/internet with thanks)
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा
 ए माँ - ऐ माँ
तुझे कोटि कोटि प्रणाम !!

भूखे जागे व्यंग्य वाण सह
मान प्रतिष्ठा हर सुख त्यागा
पर नन्हे तरु को गोदी भर
नजर बचाए पल पल पाला
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा !!

तू लक्ष्मी तू अमृत बदली
कामधेनु अरु कल्पतरु तू
जगदम्बा तू जग कल्याणी
करुना प्यार की देवी माँ तू
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा !!

प्रथम गुरु -दर्पण -उद्बोधक
सखा श्रेष्ठ मंगल प्रतिमा तू
बंदों श्रृष्टि सृजन कुल द्योतक
चरण स्वर्ग शरणागत ले तू
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा !!

स्वार्थ परे रह कर जीवन भर
जिसको तूने दिया सहारा
वो भूले भी -भुला सके क्या
माँ आँचल सुख प्यारा -न्यारा !
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२५.५.२०११
हजारीबाग १३.१२.१९९७ ११.३० पूर्वाह्न



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

5 comments:

  1. माँ की महिमा का अद्वितीय बखान - जय हो

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  2. प्रिय धीरेन्द्र भाई प्रोत्साहन के लिए आभार
    भ्रमर ५

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  3. प्रिय राकेश जी हार्दिक आभार माँ के स्नेह को आप ने सराहा और बल मिला
    भ्रमर ५

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  4. आदरणीय शास्त्री जी माँ कि ममता का कोई जबाब नहीं आप ने इस रचना को मान दिया और चर्चा मंच पर स्थान दिए बड़ी ख़ुशी हुयी आभार
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५