गोप गोपियां सरावोर रंग राधा कान्हा नाचें
ढोल नगाङे गूंज रहे हैं घुंघरू छन छन बाजे
रंग रंगीली न्यारी प्यारी छवि कितनी मनुहारी
होली रस में ङूबी धरती खुशी सभी नर नारी
स्वर्ग अप्सरा कामधेनु हैं हर आनंद समायो
फागुन के रंग चोला रंग्यो प्रीति पिया उर लायो
गली गली में दौङ लगी है झुंङ बना वे फिरते
काले पीले नीले मुख में ताक रहे सब अपने
घंघरा चोली साङी कुर्ता क्या पहने चित चोर
नटखट नंदलाल सब पागल खोज फिरे चहुं ओर
कभी दिखे गोपिन के संग तो राधा संग बरजोरी
मुरली छीन लई राधा ने सौतन हंसी ठिठौली
गुल गुलाल मल लाल गाल ले कहीं किशोरी भागे
टोपी कुर्ता बंदर मुख ले कुछ किशोर मतवाले
भंग पिये हैं आंख लाल ले सुस्त मस्त कर चाल
हॅसते तो हॅसते ही जाते शोर कमाल धमाल
गुझिया पान मिठाई खाते कुछ ठंढाई पीते
और नशीले नैना चितवन फागुन का रस पीते
अल्हड मस्ती छेड़ छाड़ है वासन्ती बौराई
पियरी पहने ऋतुराज भी मस्त खुमारी छाई
भ्रमर फूल कलियां पराग है आम्र वहीं बौराए
कोयल कूके मोर नाचते होरी धुन सब गाए
भूले बिसरे बदरा भी फागुन रस भर घर आए
सेज सजाए ङोली बैठी बदरी जी हुलसाए
गदगद् शीतल रंग बदन तन मन को चला भिगोता
फागुन ही हर रोज रहे प्रभु राम प्रेम अरू सीता।।
सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर
1:00 pm -1:50 pm
बरेली – लखनऊ ( उ. प्र. )
1:00 pm -1:50 pm
बरेली – लखनऊ ( उ. प्र. )
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें मोदी संस्कृति:न भारतीय न भाजपाई . .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
ReplyDeleteवाह !!! बहुत सुंदर भावों की अभिव्यक्ति ,,
ReplyDeleteRECENT POST: होली की हुडदंग ( भाग -२ )
बहुत ही बेहतरीन सुन्दर भावों की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteआदरणीया शालिनी जी प्रोत्साहन के लिए आभार आप को भी होली की ढेर सारी शुभ कामनाएं
ReplyDeleteभ्रमर 5
आदरणीय धीरेन्द्र भाई जी होली की छटा भरी ये रचना आप की मन को छू सकी सुन ख़ुशी हुयी आप को भी होली की ढेर सारी शुभ कामनाएं
ReplyDeleteभ्रमर 5
आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी होली की ढेर सारी शुभ कामनाएं आप का इस ब्लॉग में स्वागत है रचना पर आप का प्रोत्साहन मिला हर्ष हुआ
ReplyDeleteभ्रमर 5
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीय संजय जी प्रोत्साहन के लिए आभार
ReplyDeleteभ्रमर ५
आदरणीया स्वप्निल शुक्ल जी ..बहुत नायाब प्यारे भाव ..स्वप्निल प्रेरणा युक्त स्वपन सब सच हों
ReplyDelete..सुन्दर रचना ...
यह दिव्यपुँज है,
जो जितना है जलता,
उतना होता है रोशन.
जो जितना है तपता ,
उतना होता है दिव्य.
यह दिव्यपुँज है ,
जिसे पाना है मेरा लक्ष्य.
एक स्वप्निल प्रेरणा है ,
यह दिव्यपुँज,
जिसे पाना है मेरा कर्त्तव्य सहर्ष .
भ्रमर ५