Thursday, April 28, 2011
Check out हे नारी तू पंगु बने ना « Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Wednesday, April 27, 2011
Check out हैप्पी बर्थ डे टू….. « Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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Tuesday, April 26, 2011
Check out उस कुर्सी क्या आग लगी है ??? jagran junction forum « Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Monday, April 25, 2011
----यादें ----
अपनी माँ अपनी ही होती है -अपना भारत
----यादें ----
जब जब ठेस लगी है
मेरे-धूल में सना हूँ
लिपटा हूँ -उर से उसके
याद आई है माँ की
झाड़ फूंक कर उठाया था
मोती गिराए- गले- से
लगाया था जिसने !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
२५ .०४ .२०११
(photo with thanks from other source)दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
Sunday, April 24, 2011
खिल ‘गुलाब’ सी खुश्बू देती
चंदा जैसे दूर गगन में
रह भी कितने प्यारे
सांसो में मेरी बसते हो
मन में कर उजियारे !!
अगर पास –तुम- मेरे- होते
तो मै होती धवल चांदनी
पपीहा सी मै रहूँ निहारे
कितने मौसम बीते !!
कली के जैसे बंद पड़ी मै
जो ‘प्रिय’ मुझको छूते
खिल ‘गुलाब’ सी खुश्बू देती
भौंरे सा तुम अरे पिया-
फिर- कैद यहीं हो जाते !!
‘कोयल’ सी मै कूकती होती
जो तुम पास हमारे !!
(photo with thanks from other source)
अगर कहीं तुम
अगर कहीं तुम
इस बगिया या उस उपवन मे
होते- तो -मै -प्रियतम -
बनी ‘मोरनी’
नाच -नाच खुश होती !!
(photo with thanks from other source)
इस 'सर' मे जो
परछाईं भी
मेरे ‘हंस’ की -
तेरी ‘हंसिनी’
(photo with thanks from other source)
‘कमल’ के जैसे
खिली हुयी
'तर'-'तर' के- फिर
सबका 'मन' हर लेती !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
२४.४.२०११ जल पी बी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
Saturday, April 23, 2011
Check out हंस को कौआ- बना डालते हैं (jagran junction forum) « Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Friday, April 22, 2011
Thursday, April 21, 2011
Monday, April 18, 2011
उस बिजली के आलिंगन से
उस बिजली के
आलिंगन से
बादल जब मै
गर्वोन्नत हो
गरज गरज कर
घूम रहा था
सूखा - रूखा
उस बिजली के
आलिंगन से
'छलनी' हो दिल
बरस पड़ा था
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
१६.४.2011
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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कली से जब तुम फूल बनी थी
कली से जब
तुम फूल बनी थी
वहीँ पास में
डेरा डाले
उस दिन मैंने
पुंकेसर - केशर - दल
सब कुछ -रंग -बिरंगा
भौंरे सा कुछ
उड़े - मचलते
देख लिया था
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
१७.४.११ जल पी.बी.
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
गोकुल का आनंद समेटे- सत्य नारायण का प्रसाद हैं
सत्य नारायण का प्रसाद हैं
सरयू पावन की गोदी में
शिव ने हमें दुलारा
माँ-सरोज ने हमें खिलाया
कीचड़ में ये कमल उगा
राजा राम दिए आदर्श
शंखनाद फिर राम-राज्य का
जय जय राम घोष स्वर गूंजा
सीता राम की मूर्ति दिल ले
सत्यम शिवम् सुंदरम को भज
तुलसी की मै राह चला
करी वंदना और साधना
गंगा--गोदावरी सरस्वती की
ममता पा के
बरस उठा घन-श्याम मेह
बचपन गोदी माँ की छोड़े
चौरासी में भटक रहा
कर्म क्षेत्र उजियारा बिजली
भारत बाहर -जहाँ तहां
मधुर-मधुर फिर गीत रचे
दर्द और दर्पण ने दिल के
खुश्बू बेला की माटी पा
अवधपुरी अवधी प्रतापगढ़
रामायण की बिखरी खुश्बू
प्राणवायु को साँस समेटे
अब मन -मयूर बन
गली -गली में गाँव गाँव में
रोम-रोम में होकर पुलकित
सभी दिशा सागर झीलों में
जन मानस के बीच आज है
लहर -लहर सुर वीणा झंकृत
कभी ‘वीर’ रस - कभी ‘धीर’ तो
‘धर्म’ कर्म करुणा से सज्जित
सोलह कला और श्रृंगार से
कविता को यों सजा रहा
लगता जैसे कोई अप्सरा
कोई मेनका !!
घुंघरू पहने नाच रही हो
इंद्र धनुष सतरंगी रंग से
नील गगन को लाल किये वो
धानी चुनरी सराबोर कर
होली खेले लाल हुयी हो
वो गुलाल सी -खिल गुलाब सी
सेब सरीखी लिए गाल वो
सूरज की आभा होंठो ले
प्रभा तेज ले चली चूमने
विश्वामित्र के योग सत्य को
कामदेव को रूपमती वो
यौवन मदिरा मस्त नैन के
प्याले में भर
जाम पिलाये
माया जाल पाश में बांधे
कोई बवंडर भँवर सरीखी
वो अनन्त सागर में जैसे
चली डुबाने !!
मै ही सब हूँ या मै क्या हूँ ???
प्रेम परीक्षा प्यार सिखाने
खुद का भी अस्तित्व मिटाने
जन कल्याण में किसी हवन में
कूद पड़ी हो !!
जली चली बलिदानी वो फिर
खुश्बू बनकर उड़ निकली हो
इसी धरा पर -फिर से फिर से
प्राण वायु बन
तेरे अन्दर -
मेरे अपने -अपने अन्दर !!!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
26.3.2011
जल पी.बी.
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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