BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Tuesday, May 17, 2016

गुमशुदा हूँ मैं


गुमशुदा हूँ  मैं
तलाश जारी है
अनवरत 'स्व ' की
अपना ‘वजूद’ है क्या ?
आये खेले ..
कोई घर घरौंदा बनाए..
लात मार दें हम उनके 
वे हमारे घरों को....
रिश्ते  नाते उल्का से लुप्त
विनाश ईर्ष्या विध्वंस बस
'मैं ' ने जकड़ रखा  है मुझे
झुकने नहीं देता रावण सा
एक 'ओंकार'  सच सुन्दर
मैं ही हूँ - लगता है
और सब अनुयायी
'चिराग'  से डर लगता है
अंधकार समाहित है
मन में ! तन - मन दुर्बल है
आत्मविश्वास ठहरता नहीं
कायर बना  दिया है ....
सच को अब सच कहा नहीं जाता
चापलूसी चाटुकारिता  शॉर्टकट
ज़िन्दगी की आपाधापी की दौड़ में
नए आयाम हैं  , पहचान हैं  
मछली की आँख तो दिखती नहीं
दिखती बस है मंजिल...
परिणाम - शिखर
शून्य में ढ़केल देता है फिर ..
शून्य - उधेड़बुन चिंता - चिता
‘एकाकीपन’ तमगा मिल जाता  है
गले में लटकाए निकल लेता हूँ
अपना ‘वजूद’ खोजने
शायद अब जाग जाऊं
‘गुमशुदा’ हूँ मैं
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू हिमांचल प्रदेश
६/५/२०१६

१०:५० - ११;१५ पूर्वाह्न



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-05-2016) को "अबके बरस बरसात न बरसी" (चर्चा अंक-2345) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय शास्त्री जी गुमशुदा हूँ मैं ने आप के मन को छुवा और आप ने इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया बहुत ख़ुशी हुयी ..
    आभार
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५