BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Saturday, May 17, 2014

कौन हो तुम प्रेयसी ?

(photo from google/net)


कौन  हो  तुम  प्रेयसी ?
कल्पना, ख़ुशी या गम
सोचता हूँ मुस्काता हूँ,
हँसता हूँ, गाता हूँ ,
गुनगुनाता हूँ
मन के 'पर' लग जाते हैं
घुंघराली  जुल्फें
चाँद सा चेहरा
कंटीले कजरारे नैन
झील सी आँखों के प्रहरी-
देवदार, सुगन्धित काया  
मेनका-कामिनी,
गज गामिनी
मयूरी सावन की घटा
सुनहरी छटा
इंद्रधनुष , कंचन काया
चित चोर ?
अप्सरा , बदली, बिजली
गर्जना, वर्जना
या कुछ और ?
निशा का गहन अन्धकार
या स्वर्णिम भोर ?
कमल के पत्तों पर ओस
आंसू, ख्वाबों की परी सी ..
छूने जाऊं तो
सब बिखर  जाता है
मृग तृष्णा सा !
वेदना विरह भीगी पलकें
चातक की चन्दा
ज्वार- भाटा
स्वाति नक्षत्र
मुंह खोले सीपी सा
मोती की आस
तन्हाई पास
उलझ जाता हूँ -भंवर में
भवसागर में
पतवार पाने को !
जिंदगी की प्यास
मजबूर किये रहती है
जीने को ...
पीने को ..हलाहल
मृग -मरीचिका सा
भरमाया फिरता हूँ
दिन में तारे नजर आते हैं
बदहवाश अधखुली आँखें
बंद जुबान -निढाल -
सो जाता हूँ -खो जाता हूँ
दादी की परी कथाओं में
गुल-गुलशन-बहार में
खिलती कलियाँ लहराते फूल
दिल मोह लेते हैं
उस 'फूल' में
मेरा मन रम जाता है
छूने  बढ़ता हूँ
और सपना टूट जाता है
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
७-७.२० मध्याह्न
२३.०२.२०१४
करतारपुर , जालंधर , पंजाब

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

8 comments:

  1. आदरणीय शास्त्री जी जय श्री राधे प्रियतमा के रूप का समग्र वर्णन आप के मन को छू सका और आप ने रचना को चर्चा मंच पर स्थान दिया बहुत ख़ुशी हुयी आभार
    भ्रमर ५

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  2. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...!
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  3. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...!
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  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...!
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  5. प्रिय धीरेन्द्र भाई आभार प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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  6. खूबसूरत पंक्तियाँ...बधाई

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  7. प्रिय हिमकर जी आभार प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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  8. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति भ्रमर साब !

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५