BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Thursday, March 9, 2023

आज राधा ने की बरजोरी


मुरली की हर तान -२ सुनाये -नाच दिखाए ना बच पाए श्याम
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी ..
 

बड़ा अजूबा लगता प्यारा -क्यों हारा -जसुदा मैया का दुलारा
सजा हुआ- हम तक ना पंहुचा -फंसा जाल में- क्यों ना हमें पुकारा
दही बड़ा पकवान मिठाई सूख  रहा ,गायों ने ना दूध दिया
अभी रहो चुप -पिचकारी ना दबे जरा -क्या देखे आँखें मूँद लिया
लचकन कैसी -२ कमर की देखो -हाथ में कैसी चूड़ी
पकड़ कलाई ली राधा की -देखो सीना जोरी
चलो गुइयाँ देखन को होरी
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी

फाग खेलता लगे कबड्डी-रंगा  जमीं को सारा
कभी लिपटता आँखें मलता -राधा के संग –अरे !! फिसलता जाता
श्याम रंग के बदरा विच -ज्यों -दामिनी दमके- दांत चमकता सारा
कमल खिला ज्यों –इन्द्रधनुष- मुख मंडल शोभे- चमके आँख का तारा
 देख करे क्या 2 -आज पकड़ेंगे -हम भी चोरी  
नशा चढ़ा क्या -२- बैठे ताके -भौंरा जैसे गुपचुप झांके
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी



शर्म हया क्या बेंचा उसने -खुले अंग हैं फटे वस्त्र  - या समझ न पाए
मदमाती यौवन से जैसे कली फूटती देखे दुनिया संभल न पाए
मैया गैया गाँव भुलाये- इत उत चितए- कान्हा -को भी याद न आये
लट्ठ उठाये भी राधा के- गले वो लगता -ढोल मजीरा हाँथो से क्या ताल बजाये
देख मजा -२ लेंगे हम सखियाँ -खेलेंगे न होली -
छुप जा देखो चली आ रही ग्वाल बाल की टोली
संभलती  ना -अब भी ये छोरी
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी

धड़कन मन की बढती जाती मन व्याकुल है -रंग हाँथ से गिर न जाये
खेल देख अब -चढ़े नशा कुछ -जोश चढ़े अब छुपा कहाँ न मिलता हाय 
चलो रगड़ें अब रंग गुलाल -दिलाएं याद -भले हो ‘कुछ’ को आज मलाल 
चूम लें -लिख दें -मन की हाल -गुलाबी होंठों से दें छाप 
रात भर खेलेंगे-२ हम फाग -खोलकर दिल नाचेंगे आज
भुला सकेगा ना कान्हा रे -मथुरा की ये होली
आज -२ राधा ने की बरजोरी -चलो गुइयाँ देखन को होरी

मुरली की हर तान -२ सुनाये -नाच दिखाए ना बच पाए श्याम
आज -२ राधा ने की बरजोरी,,

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
अपने ब्लॉग भ्रमर का दर्द और दर्पण से



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, March 7, 2023

नाचे मोरी नथुनिया

चली फागुन की ठंडी बयार हो
मनवा झूमे सजनवा
मोरे जियरा में उठेला हिलोर हो
नाचे मोरी नथुनिया
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अमवा बौराया मनवा भी फाग हो
होंठ कांपे हैं गाए कोयलिया
लाल गुलाबी धानी चूनर बेकार हो
बिन सजना केवल अमावस अंधेरिया
चली फागुन की....
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ढोल मजीरा मृदंग बजे है
आवा आवा सजन अंगनाई
मोरे जियरा में उठेला तूफान हो
कान तरसें सुनइ शहनाई
चली फागुन की...
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हर आहट दौडूं घर बाहर
सुर्ख चेहरा पे आंखे पथराई
लाल गाल टेसू से टपके गुलाल
सिहरे कांपे बदन बदरी जैसे है छाई
चली फागुन की...
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दहके होली अगन जरे मोरा बदन
चूड़ी कंगना ना तनिको भाए
रंग बरसा है तर हुआ सारा बदन
आए आए सजन घर आए।
चली फागुन की .. 
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चमक गई बिंदिया कुंडल भी चूमे
चमक नैनों में आई सजनिया
नथिया औ बेसर नाचे रे झूमे
सजन गदगद मिली दुल्हनिया
चली फागुन की ठंडी....



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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़ भारत।
7.3.2023
फोटो साभार गूगल नेट से 



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं