BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Thursday, September 17, 2015

पाँव तेरे बढ़ रहे थे धड़कनें मेरी बढ़ीं



भोर की वेला में जब कल
हम अजनवी दो मिले
दूरियां सिमटी नहीं पर
नैन भर प्याले पिए !
इतनी सारी प्यारी बातें
मन ने जी भर भर किये
वादियाँ गुमसुम खड़ी थीं
शान्त शीतल व्यास थी
पुष्प अगणित खिल उठे थे
खींच नजरों को रहे थे
पर जाने नैन भँवरे
नैन में क्यों खो गए थे ?
व्यास नदिया का उफनता शोर
फिर कानों में बोला जोरजोर
चल पड़ो गतिशील बन हे छोड़ के कोमल कठोर
ना रुको हो भ्रमित प्रेमी  -है नहीं कुछ ओर छोर
पाँव तेरे बढ़ रहे थे धड़कनें मेरी बढ़ीं
धड़कनें तेरी थी कैसे प्रश्न  ले के थीं खड़ी 
पक्षियों   ने गीत गाया मधुरता से
मन को फिर  भटका दिया 
मिलना बिछड़ना रीति कल की
सब त्वरित समझा दिया
प्यासे बादल मिल गले से
दूर जाने क्यूँ बढे ?
ठाँव मंजिल हर जगह ना
अपनी मंजिल बढ़ चले
अपनी मन्जिल से मिलेंगे
हर्ष-आंसू छल-छलाके
खो के इक दूजे में दिल भर
हंस सकेंगे रो सकेंगे
गिले शिकवे कह सकेंगे
ताप सारे हर सकेंगे
खो के एक दूजे में प्रियतम
'शून्य' हम फिर हो -चलेंगे !
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
विश्वकर्मा पूजा
१७--२०१५ -.१५ - पूर्वाह्न 
कुल्लू हिमाचल



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

7 comments:

  1. ओंकार भाई आभार प्रोत्साहन हेतु ..और अभिनन्दन आप का यहाँ
    जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  2. अहा क्‍या खूब लिखा है। मेरे ब्‍लाग पर आपका स्‍वागत है।

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  3. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

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  4. सुंदर भावाभिव्यक्ति

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  5. जमशेद भाई स्वागत आप का यहां और आभार प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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  6. जीवन टिप्स -अनाम भाई स्वागत आप का यहां और आभार प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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  7. हिमकर भाई जय श्री राधे रचना आप के मन को छू सकी ख़ुशी हुयी आभार प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५