BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Saturday, May 2, 2015

मन की बात



आओ भ्रष्टाचारी भाई
निज मन में तुम झांको
भारत देश है क्यों कर पिछड़ा
मानचित्र में- आंको
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बदहाली बेहाली शिक्षा
अंधकार घर दूर है शिक्षा
टूटी सड़कें ढहे हुए पल
करें इशारा भ्रष्ट काल-कुल
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छीन झपट कर जोड़े  जाते
शीश महल -पर नहीं अघाते
स्नेह गया ना लाज हया
व्यथित ह्रदय मुरझा चेहरा
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भोले प्यारे बच्चे अपने
भाएं अच्छी मन की बात
दुर्गुण करनी तेरी , अपने -
काहे लादें सर पे पाप ?
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'चोर' बना जिनकी खातिर
कल काल मुख कर लेप करें
माँ बाप न मानें मै शातिर
मुंह फेर चलेंगे छोड़ तुझे
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ना बो कंटक तू फूल बिछा
क्यों ह्रदय घात फांसी मांगे
सतकर्म करे प्रभु सभी रिझा
पल दो पल जी खुशियाँ मांगे
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ये महल दुमहले माया सब
कब धूल -ढेर माटी मिलते
प्रेम -पुण्य यादें सुन्दर
सतकर्म आत्म जाएँ संग में
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू हिमाचल भारत
२६.४.२०१५
२.२० मध्याह्न



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

6 comments:

  1. जया जी स्वागत है आप का यहां रचना आप का ध्यान आकृष्ट कर सकी ख़ुशी हुयी
    आभार
    भ्रमर ५

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  2. आदरणीय शास्त्री जी आभार आप का रचना का विषय आप को अच्छा लगा और आप ने इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया ख़ुशी हुयी
    भ्रमर ५

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  3. प्रिय राजीव भाई प्रोत्साहन हेतु आभार
    भ्रमर ५

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  4. बहुत खूब

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५