Friday, October 23, 2015
KULLU DASHHARA
Labels:
KULLU DASHHARA
Location:
Kullu, Himachal Pradesh 175101, India
Wednesday, September 30, 2015
आओ हम प्रातः उठ जाएँ
आओ हम प्रातः उठ जाएँ
दोनों कर नैन भरे देखें
लक्ष्मी शारद सब दर्शन
पाएं
माँ-पृथ्वी के हम गले
लगें
भजन कीर्तन जुड़ प्रभु
से
कुछ योग-ध्यान में खो
जाएँ
ले दिव्य दृष्टि पाएं
प्रभु को
जीवन को अपने सफल बनायें
आओ हम प्रातः उठ जाएँ
प्रातः वेला में घूम
-टहल
देखें कलरव हर चहल पहल
जब खिलें पुष्प या पंकज
दल
मन-हर माँ प्रकृति के
सुखकर दृश्य
ले श्वांस तेज सब दिल
में भर
मुस्काते -हँसते दिन-रैना
जीवन को अपने सफल बनायें
आओ हम प्रातः उठ जाएँ
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कुछ पुण्य करें कुछ दान
करें
चिड़िया कौओं का ध्यान
रखें
माँ-गौ माता को नमन करें
शीतल जल कुछ तो दे आएं
जो असहाय कहीं दुर्बल
हैं
कुछ अंश प्रभु का दे आएं
ऊर्जा ऊष्मा आशीष सभी
के
जीवन को अपने दिव्य बनायें
मुख -मंडल जब आभा अपने
मन ख़ुशी सभी को खुश रख
के
हर कार्य सफलता पा जाएँ
आओ हम प्रातः उठ जाएँ
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हम स्वच्छ रहें परिवेश स्वच्छ
नित साफ़ सफाई मन लाएं
आरती वंदन मंदिर मस्जिद
गुरूद्वारे-चर्च कहीं जाएँ
है कोई करे नियंत्रित सब
हम प्रेम करें रखें कुछ भय
उस प्रभु में खो जाएँ पल -छिन
विचरें हम शून्य व् सूक्ष्म जगत
शुभ सुन्दर सच का करें वरन
जीवन आओ हम सफल बनायें
आओ हम प्रातः उठ जाएँ
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२०-९-२०१५
रविवार
३.४२-४.४२ पूर्वाह्न
कुल्लू हिमाचल प्रदेश भारत
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
Thursday, September 17, 2015
पाँव तेरे बढ़ रहे थे धड़कनें मेरी बढ़ीं
भोर की वेला में जब कल
हम अजनवी दो मिले
दूरियां सिमटी नहीं पर
नैन भर प्याले पिए !
इतनी सारी प्यारी बातें
मन ने जी भर भर किये
वादियाँ गुमसुम खड़ी थीं
शान्त शीतल व्यास थी
पुष्प अगणित खिल उठे थे
खींच नजरों को रहे थे
पर न जाने नैन भँवरे
नैन में क्यों खो गए थे ?
व्यास नदिया का उफनता शोर
फिर कानों में बोला जोर –जोर
चल पड़ो गतिशील बन हे छोड़ के कोमल कठोर
ना रुको हो भ्रमित प्रेमी -है नहीं कुछ ओर छोर
पाँव तेरे बढ़ रहे थे धड़कनें मेरी बढ़ीं
धड़कनें तेरी थी कैसे प्रश्न ले के थीं खड़ी
पक्षियों ने गीत गाया मधुरता से
मन को फिर भटका दिया
मिलना बिछड़ना रीति कल की
सब त्वरित समझा दिया
मिलना बिछड़ना रीति कल की
सब त्वरित समझा दिया
प्यासे बादल मिल गले से
दूर जाने क्यूँ बढे ?
ठाँव मंजिल हर जगह ना
अपनी मंजिल बढ़ चले
अपनी मन्जिल से मिलेंगे
हर्ष-आंसू छल-छलाके
खो के इक दूजे में दिल भर
हंस सकेंगे रो सकेंगे
गिले शिकवे कह सकेंगे
ताप सारे हर सकेंगे
खो के एक दूजे में प्रियतम
'शून्य' हम फिर हो -चलेंगे !
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
विश्वकर्मा पूजा
१७-९-२०१५ -५.१५ -६ पूर्वाह्न
कुल्लू हिमाचल
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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Friday, August 28, 2015
रक्षा बंधन
रक्षा बंधन पावन पर्व के शुभ अवसर पर सभी प्यारी बहनों और सभी मित्रों को ढेर सारी शुभ कामनाएं सभी बन्धु बांधव प्रिय जन सज्जन भाइयों को उनका प्रेम सदा मिलता रहे बहने सदा ख़ुशी और शांति से जीवन के सोपान पर अग्रसर हों सब सदा उनका सम्मान और मान रखें ये अनमोल राखी का बंधन सदा एक दूजे को प्रेम के बंधन में बांधे रखे बालपन का वो अबोध प्यार सखा भाव लिए भाई सदा बहना की रक्षा में तत्पर रहे
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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Monday, August 24, 2015
नर्सिंग होम
नर्सिंग होम
कुकुरमुत्ते सा उगा
व्यापार का नया धंधा
फलता -फूलता
ना हो कभी मंदा
मेडिकल वाले उन्हें ही
अच्छा बताते हैं
रिक्शे वाले भाई
पकड़ यहाँ लाते हैं
भाड़ा नहीं - 'कमीशन' ले जाते हैं
अच्छा सा होटल है -ए.सी. है
हीटर है, गीजर है
टी वी है केबल है
पानी की बोतल-ग्लूकोज है
काफी हाल में बस
चहल -पहल -दिखता है
गली नुक्कड़ -चौराहे पर
खुले -होटल से शो -रूम
सजी नर्सें केरल से -
कन्या कुमारी का झरोखा दिखाती है
पांच सौ रूपये में रखी -
कुछ जूनियर डाक्टर्स भी
जबरन मुस्का जाते हैं
बड़े बड़े बोर्ड -दस-काबिल डाक्टर
लिखे दिख जाते हैं
भर्ती होने के बाद -चीखते - मरते
बमुश्किल -एक -नजर आते हैं
भर्ती से पहले -
जेब तलाश ली जाती है
फिर उपचार -आपरेशन
जंग -शुरू हो जाती है
अपनी टांगों पर चल के निकलें
या चार कन्धों पर
पहले पूरी रकम -पूँजी
जमा कर ही -छुट्टी दी जाती
बेबस लाचार जो केवल
रोटी ही जाने हैं
डॉक्टर बाबू को भगवान माने हैं
नहीं जानें एक - दो
क्या जानें किडनी - खून
बच बचा के जान
बेचारे कुछ दिन में
चोरी से भागे हैं !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल
"भ्रमर "५
प्रतापगढ़ उ.प्र.२६.०७.२०११
६.१५ पूर्वाह्न जल पी बी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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