BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Monday, February 24, 2014

जो मुस्का दो खिल जाये मन ---------------------------------


जो मुस्का दो खिल जाये मन
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खिला खिला सा चेहरा तेरा
जैसे लाल गुलाब
मादक गंध जकड़ मन लेती
जन्नत है आफताब
बल खाती कटि सांप लोटता
हिय! सागर-उन्माद
डूबूं अगर तो पाऊँ मोती
खतरे हैं बेहिसाब
नैन कंटीले भंवर बड़ी है
गहरी झील अथाह
कौन पार पाया मायावी
फंसे मोह के पाश
जुल्फ घनेरे खो जाता मै
बदहवाश वियावान
थाम लो दामन मुझे बचा लो
होके जरा मेहरबान
नैन मिले तो चमके बिजली
बुत आ जाए प्राण
जो मुस्का दो खिल जाए मन
मरू में आये जान
गुल-गुलशन हरियाली आये
चमन में आये बहार
प्रेम में शक्ति अति प्रियतम हे!
जाने सारा जहान
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२०.०२.२०१४
४.३०-५ मध्याह्न
करतारपुर जालंधर पंजाब
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

4 comments:

  1. प्रभावी अंदाज़ है आपकी लेखनी में

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  2. संजय भाई आभार प्रोत्साहन हेतु आप सब का स्नेह और कृपा बनी रहे ...
    जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  3. वाह क्या बात है, भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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  4. प्रिय हिमकर श्याम जी रचना आप को पसंद आयी लिखना सार्थक रहा
    आभार
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५